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विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप

विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप
नमस्कार दोस्तो! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख में हम बात करेंगें मुद्रा विनिमय समझौते विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप या Currency Swap Agreement के बारे में, जानेंगे यह कैसे काम करता है तथा इसके क्या फायदे हैं।

विदेशी निवेश, बाहरी कमर्शियल उधारी, और नॉन-रेजिडेंस इंडियन्स (NRI) डिपॉजिट में बड़े बदलाव हुए हैं.

छह प्रमुख बैंकों ने मुद्रा अदला-बदली की पेशकश की

फ्रैंकफर्ट : अमेरिका के फेडरल रिजर्व विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप सहित दुनिया के छह प्रमुख केन्द्रीय बैंकों ने कहा है कि वह आपस में एक दूसरे को विदेशी मुद्रा की आपूर्ति की आपसी सुविधा प्रदान करेंगे। इन बैंकों ने वर्ष 2007 में हुई उठापटक के बाद वैश्विक वित्तीय प्रणाली को स्थिरता प्रदान करने के लिए जो व्यवस्था की गई थी उसका आगे विस्तार किया है।
आज जो निर्णय लिया गया उसमें मुद्राओं की अदला बदली की भी व्यवस्था है। अब तक इस व्यवस्था को अस्थाई उपाय के तौर पर लिया जाता रहा है। यह व्यवस्था, अमेरिका के फेडरल रिजर्व, यूरोपीय सैंट्रल बैंक, विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप दि बैंक ऑफ जापान, दि बैंक ऑफ इंग्लैंड, दि बैंक ऑफ कनाडा और दि स्विस नेशनल बैंक के बीच हुई है।
बैंकों के बीच मौजूदा स्वैप व्यवस्था में केन्द्रीय बैंकों को उनके अपने देश में किसी भी मुद्रा में नकदी उपलब्ध कराने की व्यवस्था होगी। उन्हें जिस भी मुद्रा में नकदी की आवश्यकता होगी वह उपलब्ध कराई जाती है। फेडरल रिजर्व और ईसीबी ने डालर.यूरो की अदला बदली व्यवस्था पहली बार दिसंबर 2007 में शुरू की थी। (एजेंसी)

मुद्रा विनिमय समझौते की प्रक्रिया

आइए इसकी कार्यप्रणाली को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं। मान लें “रमेश” जो कि, एक भारतीय उद्योगपति है को अमेरिका में अपनी एक फर्म के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर की पाँच वर्षों के लिए आवश्यकता है। एक डॉलर को 75 रुपयों के बराबर समझा जाए तो एक लाख अमेरिकी डॉलर की रुपयों में कीमत 75 लाख रुपये होगी। वहीं “स्टीव” जो कि, एक अमेरिकी उद्योगपति है को भारत में अपनी किसी कंपनी के खर्च के लिए 75 लाख भारतीय रुपयों की 5 वर्षों के लिए आवश्यकता है

रमेश यदि किसी अमेरिकी बैंक से ऋण लेता है तो उसे स्टीव की तुलना में अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा इसके अतिरिक्त यदि भविष्य में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप हुआ तो रमेश को ब्याज तथा मूलधन के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा स्टीव को भी भारतीय बैंक से ऋण लेने पर रमेश की तुलना में अधिक ब्याज देना होगा। उदाहरण के तौर पर माना रमेश को भारत में 75 लाख रुपयों तथा अमेरिका में 1 लाख डॉलर का ऋण क्रमशः 10% तथा 8% की वार्षिक ब्याज दर पर मिलता है, जबकि स्टीव को यही ऋण 15% तथा 6% की सालाना ब्याज दर पर प्राप्त होता है।

देशों के मध्य मुद्रा विनिमय समझौते

लोगों के अलावा विभिन्न देशों की सरकारें भी इसका उपयोग करती हैं। जैसा कि, आप जानते हैं वर्तमान में अमेरिकी डॉलर एक प्रमुख वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचलन में है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए किसी भी देश को डॉलर की आवश्यकता होती है अतः सभी देशों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में अधिक मात्रा में डॉलर हो यह अहम हो जाता है। इस प्रकार माँग बड़ने के कारण अमेरिकी डॉलर अन्य देशों की घरेलू मुद्रा की तुलना में मजबूत होता जाता है तथा वैश्विक बाजार में अमेरिकी मुद्रा का प्रभुत्व एवं एकाधिकार बढ़ता है।

किसी आर्थिक संकट या व्यापार घाटे की स्थिति में देश के केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्रा भंडार से उसकी भरपाई करनी पड़ती है ताकि उस देश की घरेलू मुद्रा और डॉलर की विनिमय दर स्थिर बनी रहे। किंतु यदि आर्थिक संकट बड़ा हो अर्थात विदेशी मुद्रा भंडार में उपलब्ध डॉलर से भी जब घाटे की पूर्ति न कि जा सके तब ऐसी स्थिति में IMF जैसी संस्थाओं या किसी देश से ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है, साल 1991 में आया आर्थिक संकट इसका उदाहरण है।

समझौते की आवश्यकता

हमने आर्थिक संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऋण की चर्चा की किन्तु विदेशी मुद्रा में ऋण लेने का एक मुख्य नुकसान यह है की भविष्य विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप में यदि भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में कमजोर हुआ तो भारत को ऋण में ली गई राशि से अधिक मूलधन चुकाना पड़ेगा। इसके अलावा उच्च ब्याज दर भी एक महत्वपूर्ण समस्या है।

इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में मुद्रा विनिमय या Currency Swap समझौता सामने आया है। इसके तहत कोई दो देश यह समझौता करते हैं कि, किसी निश्चित सीमा तक वे देश निर्धारित विनिमय दर (Exchange Rate) तथा कम ब्याज पर एक दूसरे की घरेलू मुद्रा या कोई तीसरी मुद्रा जैसे डॉलर खरीद सकेंगे।

भारत की स्थिति

साल 2018 में भारत तथा जापान के मध्य 75 बिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement in Hindi) हुआ है। इसके अनुसार भारत अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति या व्यापार घाटे की परिस्थिति में अपनी मुद्रा देकर जापान से 75 बिलियन डॉलर तक की राशि के येन या डॉलर तय विनिमय दर पर एक निश्चित अवधि के लिए खरीद सकता है।

अवधि पूर्ण हो जाने पर जापान विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप भारत को उसकी मुद्रा लौटाकर दिए गए डॉलर या येन वापस ले लेगा जैसा की हमने रमेश तथा स्टीव के उदाहरण में देखा। इसके अतिरिक्त सार्क देशों के साथ भी 2 बिलियन डॉलर का समझौता करने का लक्ष्य है, जिसके चलते जुलाई 2020 में श्रीलंका से 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया जा चुका है।

उम्मीद है दोस्तो आपको ये विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप लेख (What is Currency Swap Agreement in Hindi) पसंद आया होगा टिप्पणी कर अपने सुझाव अवश्य दें। अगर आप भविष्य में ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में पढ़ते रहना चाहते हैं तो हमें सोशियल मीडिया में फॉलो करें तथा हमारा न्यूज़लैटर सब्सक्राइब करें एवं इस लेख को सोशियल मीडिया मंचों पर अपने मित्रों, सम्बन्धियों के साथ साझा करना न भूलें।

RBI ने विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप विदेशी मुद्रा बाजार नकदी प्रवाह बढ़ाने के लिए उठाया कदम, सोमवार को 2 अरब डॉलर मूल्‍य की होगी पहली अदला-बदली

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: March 12, 2020 17:11 IST

RBI to offer USD 2 bn worth American dollars on Monday to sooth forex market- India TV Hindi News

RBI to offer USD 2 bn worth American dollars on Monday to sooth forex market

नई दिल्‍ली। कोरोनावायरस महामारी की चिंता में शेयर बाजारों में भारी गिरावट के मद्देनजर विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में नकदी प्रवाह बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गुरुवार को बड़ी घोषणा की है। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि वह अमेरिकी डॉलर के लिए छह महीने की अदला-बदली के अनुबंध करेगा। अदला-बदली के अनुबंधों की पहली नीलामी सोमवार को विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप होगी, जिसमें दो अरब डॉलर के सौदे होंगे। रिजर्व बैंक ने कहा कि छह मार्च 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार 487.24 अरब डॉलर था, यह किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्‍त है।

समझौते की आवश्यकता

हमने आर्थिक संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऋण की चर्चा की किन्तु विदेशी मुद्रा में ऋण लेने का एक मुख्य नुकसान यह है की भविष्य में यदि भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में कमजोर हुआ तो भारत को ऋण में ली गई राशि से अधिक मूलधन चुकाना पड़ेगा। इसके अलावा उच्च ब्याज दर भी एक महत्वपूर्ण समस्या है।

इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में मुद्रा विनिमय या Currency Swap समझौता सामने आया है। इसके तहत कोई दो देश यह समझौता करते हैं कि, किसी निश्चित सीमा तक वे देश निर्धारित विनिमय दर (Exchange Rate) तथा कम ब्याज पर एक दूसरे की घरेलू मुद्रा या कोई तीसरी मुद्रा जैसे डॉलर खरीद सकेंगे।

भारत की स्थिति

साल 2018 में भारत तथा जापान के मध्य 75 बिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement in Hindi) हुआ है। इसके अनुसार भारत अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति या व्यापार घाटे की परिस्थिति में विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप अपनी मुद्रा देकर जापान से 75 बिलियन डॉलर तक की राशि के येन या डॉलर तय विनिमय दर पर एक निश्चित अवधि के लिए खरीद सकता है।

अवधि पूर्ण हो जाने पर जापान भारत को उसकी मुद्रा लौटाकर दिए गए डॉलर या येन वापस ले लेगा जैसा की हमने रमेश तथा स्टीव के उदाहरण में देखा। इसके अतिरिक्त सार्क देशों के साथ भी 2 बिलियन डॉलर का समझौता करने का लक्ष्य है, जिसके चलते जुलाई 2020 में श्रीलंका से 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया जा चुका है।

उम्मीद है दोस्तो आपको ये लेख (What is Currency Swap Agreement in Hindi) पसंद आया होगा टिप्पणी कर अपने सुझाव अवश्य दें। अगर आप भविष्य में ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में पढ़ते रहना चाहते हैं तो हमें सोशियल मीडिया में फॉलो करें तथा हमारा न्यूज़लैटर सब्सक्राइब करें एवं इस लेख को सोशियल मीडिया मंचों पर अपने मित्रों, सम्बन्धियों के साथ साझा करना न भूलें।

गिरती करेंसी को रोकने और विदेशी मुद्रा के रिजर्व को बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. विदेशी निवेश, बाहरी कमर्शियल उधारी, और नॉन-रेजिडेंस इंडियन्स (NRI) डिपॉजिट में बड़े बदलाव हुए हैं.

  • News18Hindi
  • Last Updated : July 07, 2022, 11:52 IST

नई दिल्ली. लगातार गिर रही करेंसी को रोकने और विदेशी मुद्रा के रिजर्व को बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. बुधवार को इनसे जुड़े मानकों में संशोधन किया गया है, जिसके तहत कर्ज में विदेशी निवेश, बाहरी कमर्शियल उधारी, और नॉन-रेजिडेंस इंडियन्स (NRI) डिपॉजिट में बड़े बदलाव हुए हैं.

इस महत्वपूर्ण फैसलों में आरबीआई ने बैंकों को अस्थायी रूप से, 7 जुलाई से प्रभावी, फॉरेन करेंसी नॉन-रेजिडेंट बैंक यानी FCNR(B) और गैर-निवासी बाहरी (NRI) डिपॉजिट करी ब्याज दरों पर मौजूदा नियमों के संदर्भ के बिना बढ़ाने की अनुमति दी है. यह छूट होगी 31 अक्टूबर 2022 तक उपलब्ध है.

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