विश्व बाजार शुल्क और सीमा

पारस्परिक व्यापार समझौते (reciprocal trade agreements)
बाजार की पहुँच बढ़ाने और विदेशी बाजारों में व्यापार का विस्तार करने के लिए देश द्विपक्षीय / क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का उपयोग करते हैं। इन समझौतों को पारस्परिक व्यापार समझौते (RTA) कहा जाता है क्योंकि सदस्य एक दूसरे को विशेष लाभ प्रदान करते हैं।
RTAs में कई प्रकार के समझौते शामिल होते हैं, जैसे कि तरजीही व्यवस्था, मुक्त व्यापार समझौते, सीमा शुल्क संघ और आम बाजार, जिसमें सदस्य व्यापार बाधाओं को कम करके एक दूसरे के निर्यात के लिए अपने बाजार खोलने के लिए सहमत होते हैं।
आवश्यकता: वे विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तत्वावधान में होने वाली रुकी हुई वैश्विक वार्ताओं के कारण हाल के वर्षों में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता बन गए हैं। कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि RTAs, बाजार एकीकरण को गहरा करते हैं और डब्ल्यूटीओ द्वारा अंतरराष्ट्रीय बाजारों को उदार बनाने के प्रयासों को पूरा करते हैं। यह स्वीकार करते हुए कि RTAs बाजार खोल सकते हैं, अन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि ये समझौते व्यापार को बिगाड़ते हैं और गैर-सदस्य देशों के साथ भेदभाव करते हैं।
विश्व बाजार शुल्क और सीमा
विश्व बाजार में जगह बनाने के लिए तार्किक हों खनन की कर-शुल्क दरें- नवीन जिन्दल
· निम्न श्रेणी के लौह अयस्क के बेनीफिसिएशन पर राहत मिले, ग्रेड के हिसाब से रॉयल्टी की दरें तय की जाएं न कि सर्वोत्तम ग्रेड के हिसाब से समान दर तय की जाए
रायपुर। कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार के बाद देश को आर्थिक पटरी पर वापस लाने के लिए सरकार के प्रयासों के बीच जाने-माने उद्योगपति और जिन्दल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के चेयरमैन नवीन जिन्दल ने सुझाव दिया है कि खनन पर कर की विश्व बाजार शुल्क और सीमा दरों को तार्किक बनाया जाए तो भारतीय उद्योग विश्व बाजार में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लेंगे। कर की अधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जाते हैं, जिस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
श्री जिन्दल ब्रिटेन से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अखबार “फाइनेंशियल टाइम्स” के ग्लोबल बोर्ड रूम सत्र में “भारतः देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए क्या सरकार जरूरी मूलभूत सुधार कर सकती है” विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी तरफ से उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय कर रही है और उसने अनेक प्रोत्साहन योजनाएं भी दी हैं लेकिन खनिज पदार्थों के खनन पर कर की अत्यधिक दरों के कारण हमारे उत्पाद महंगे हो जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय व्यवसायी मेहनती और लगनशील हैं। देश में व्यावसायिक जोखिम उठाने वालों की कमी नहीं है। हमारी प्रतिभाएं विश्व व्यवसाय में बड़ा नाम कर रही हैं लेकिन कुछ बुनियादी समस्याएं दूर हो जाएं तो कोई शक नहीं कि भारत पूरी दुनिया के बड़े उत्पादन हब के रूप में स्थापित हो जाएगा।
श्री जिन्दल ने कहा कि कर की दरों को तार्किक बनाने के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण कानून को उद्योगों के अनुकूल बनाना होगा और देश में सकारात्मक व्यावसायिक वातावरण तैयार करना होगा ताकि लोग बढ़-चढ़कर निवेश करें जिससे रोजगार के साथ-साथ देश में संपन्नता भी आएगी। उन्होंने व्यावसायिक कोयला खनन के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे देश के विकास को पंख लगेंगे और ऊर्जा क्षेत्र में नए आयाम जुड़ेंगे। भारत में बिजली की औसत खपत प्रति व्यक्ति लगभग 1000 यूनिट है जबकि अमेरिका में 20 हजार और यूरोप में 18 हजार यूनिट है। स्टील के बारे में उन्होंने कहा कि चीन प्रतिवर्ष लगभग 1000 मिलियन टन स्टील उत्पादन करता है जो भारत में मात्र 110 मिलियन टन है इसलिए हमारे देश में विकास की बहुत संभावनाएं हैं।
इस सत्र में योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि अल्पकालिक आर्थिक स्लोडाउन को कैसे नियंत्रित करें। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 3.1 फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में नकारात्मक रुख के साथ 23.9 फीसदी तक सिकुड़ गई। हालांकि तीसरी तिमाही में यह सिकुड़न कम होकर नकारात्मक 8.4 फीसदी रही लेकिन उम्मीद है कि चौथी तिमाही में यह रुख सकारात्मक हो जाएगा। आज रोजगार और अन्य आर्थिक पहलुओं को देखते हुए हमारी आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से ऊपर होनी चाहिए जिसके लिए बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा, निवेश का स्तर बेहतर बनाना होगा। पिछले 2 साल से निवेश की स्थिति नाजुक है जिसका सीधा असर उत्पादन और रोजगार के अवसरों पर पड़ रहा है। पर्यटन, रियल इस्टेट और खुदरा व्यापार को प्राथमिकता देनी होगी। हालांकि उन्होंने रिजर्व बैंक के प्रयासों की सराहना की।
इस अवसर पर फोर्ब्स मार्शल के को-चेयरमैन नौशाद फोर्ब्स ने कहा कि हमारे देश की आबादी करीब 140 करोड़ है इसलिए एक व्यापक बाजार हमारे पास है। ऐसे में तमाम सुधारों पर सभी सरकारों को साथ मिलकर काम करना होगा तभी देश की अर्थव्यवस्था जल्द ही पटरी पर वापस आ पाएगी। मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रबंध निदेशक अमीरा शाह ने इस अवसर पर कोविड-19 नियंत्रण के उपायों पर प्रकाश डाला।
गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द पटरी पर लाने और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ बाजार में उचित दर पर सामान उपलब्ध कराने के लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की) ने नीति आयोग को एक सुझाव दिया है जिसमें खनन पर अधिक कर एवं शुल्क दरों को तार्किक बनाने के लिए जीएसटी की तर्ज पर “एकल कर व्यवस्था” लागू करने के लिए कहा गया है। फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक अभी खनन पर 60-64 फीसदी कर व शुल्क वसूले जा रहे हैं, जिसकी सीमा अधिकतम 40 फीसदी होनी चाहिए। उसने रॉयल्टी की दरों को भी तार्किक बनाने का सुझाव दिया है।
फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक एमएमआरडी एक्ट-2015 लागू होने से पहले आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 30 फीसदी डीएमएफ में देना अनिवार्य है जबकि इस कानून के लागू होने के बाद आवंटित खदानों पर रॉयल्टी का 10 फीसदी डीएमएफ में देना पड़ता है। इसी तरह एनएमईटी को भी रॉयल्टी का 2 फीसदी शुल्क देना होता है। उसने यह सुझाव भी दिया है कि रॉयल्टी लौह अयस्क के ग्रेड के हिसाब से तय हो न कि सर्वोत्तम श्रेणी के हिसाब से समान दर निर्धारित की जाए। निम्न श्रेणी के लौह अयस्क के बेनीफिशिएशन पर राहत मिले और रॉयल्टी औसत बिक्री मूल्य का 5 फीसदी से अधिक न हो। सरकार इनोवेटिव लॉजिस्टिक सिस्टम से बेनीफिशिएशन करने वाली कंपनियों को 2.5 फीसदी रॉयल्टी का प्रोत्साहन दे तो निम्न श्रेणी के लौह अयस्क की खपत भी बढ़ेगी जिससे हमारे राष्ट्रीय संसाधन का समुचित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। उपरोक्त करों व शुल्कों के अलावा अलग-अलग राज्यों के भी सेश हैं। छत्तीसगढ़ में प्रति टन 11 रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर व 11 रुपये पर्यावरण शुल्क देय है एवं घने जंगलों में खदान होने पर 7 रुपये प्रति टन वन शुल्क की अदायगी करनी पड़ती है।
एसोचैम का सरकार को तांबा कंसन्ट्रेट पर सीमा शुल्क समाप्त करने का सुझाव
नई दिल्लीः उद्योग मंडल एसोचैम ने सरकार को तांबा कंसन्ट्रेट (सांद्र) पर सीमा शुल्क को 2.5 प्रतिशत से घटाकर ‘शून्य’ विश्व बाजार शुल्क और सीमा करने का सुझाव दिया है। तांबा कंसन्ट्रेट उद्योग में इस्तेमाल होने वाला प्रमुख कच्चा माल है। सरकार को अपनी बजट-पूर्व सिफारिशों में एसोचैम ने कहा है कि विश्व बाजार शुल्क और सीमा उद्योग को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए यह कदम उठाया जाना जरूरी है। इससे उद्योग को शून्य शुल्क के तहत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) वाले देशों से आयातित मूल्यवर्धित तांबा उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।
एसोचैम ने कहा, ‘‘भारत में तांबा कंसन्ट्रेट की अनुपलब्धता को देखते हुए इसके आयात पर शुल्क लगाने का कोई आर्थिक आधार नहीं है। इस पर आयात शुल्क 2.5 प्रतिशत से घटाकर शून्य या समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इससे भारतीय उद्योग को एफटीए देशों से आयातित तांबे के मूल्यवर्धित उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।’’ तांबा कंसन्ट्रेट की घरेलू उपलब्धता मात्र पांच प्रतिशत है। ऐसे में भारतीय तांबा उद्योग अपनी जरूरत का 95 प्रतिशत कंसन्ट्रेट आयात करता है।
तांबा कंसन्ट्रेट पर फिलहाल सीमा शुल्क 2.5 प्रतिशत है जबकि मुक्त व्यापार समझौतों के तहत परिष्कृत तांबे का भारत में विश्व बाजार शुल्क और सीमा शून्य शुल्क पर आयात हो रहा है। इस तरह यह पूरी तरह से उलट शुल्क ढांचे का मामला बनता है। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जापान, चीन, थाइलैंड और मलेशिया के पास भी पर्याप्त कंसन्ट्रेट नहीं है, लेकिन इन देशों में इसके शुल्क मुक्त आयात की व्यवस्था है।
इंडोनेशिया जैसे आपूर्तिकर्ता देशों से निर्यात अंकुशों की वजह से भारत के लिए तांबा कंसन्ट्रेट मंगाना मुश्किल हो रहा है। इंडोनेशिया भारत का एफटीए भागीदार है। ऐसे में भारत के पास एटीएफ मार्ग से चिली से आयात का भी सीमित विकल्प ही बचता है। चिली ने जापान, चीन और अन्य देशों को तांबा कंसन्ट्रेट के निर्यात के लिए दीर्घावधि के अनुबंध किए हैं। वह अपने उत्पादन का 90 प्रतिशत तक निर्यात करता है।
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मोदी और ट्रम्प: करोड़ों का फालतू खर्च उड़ाकर मिले दो तानाशाह, मगर इससे भारत और भारतवासियों का क्या फायदा?
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 और 25 फरवरी 2020 को भारत का दौरा किया. गोदी मीडिया ने पहले से ही ट्रम्प के दौरे का तमाशा रचना शुरू कर दिया था, क्योंकि इससे शासक भाजपा सरकार एवं उसके प्रवक्ताओं को भारतीय अर्थतंत्र की आपदा, आसमान छूती बेरोजगारी और समूचे देश में साम्प्रदायिक बंटवारे की कोशिश से जनता का ध्यान परे खींचने की एक और भटकाऊ तरकीब गढ़ने का मौका मिल जाता है. लेकिन आइये हम ट्रम्प के दौरे के दृश्यमान नजारे के पार वास्तविकताओं को समझें.
मीडिया का तमाशा रचने के लिये करोड़ों रुपये की बर्बादी
डोनाल्ड ट्रम्प ने बारम्बार इस बात पर जोर दिया है कि उसके भारत दौरे का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह होगा कि एयरपोर्ट से लेकर समारोह स्थल के बीच के रास्ते में विश्व बाजार शुल्क और सीमा सत्तर-अस्सी लाख लोग उनकी अगवानी में खड़े रहें (जबकि वास्तविकता यह है कि अहमदाबाद की कुल आबादी ही 55 लाख है) और इसमें होने वाले 80-85 करोड़ रुपये के खर्च को करदाताओं को अदा करना होगा! दूसरी ओर, अहमदाबाद के गरीब लोगों को एक दीवार के पीछे छिपाये रखे जाने का अपमान और निर्ममता झेलनी होगी. ट्रम्प के अहमदाबाद दौरे की अवधि में गरीबों को अदृश्य बना देने के गुजरात माॅडल को बड़े जोर-शोर से प्रदर्शित किया जायेगा.
“पहले ट्रम्प”, भारत नहीं
जब ट्रम्प चिल्लाते हैं “पहले अमरीका”, तो मोदी सरकार के लिये वह होता है “पहले ट्रम्प”, भारत नहीं. भारत को अमरीकी हथियार खरीदने पड़े, जबकि भारतीय निर्यातों के लिये वरीयता के प्रावधानों को हटा दिया गया और उनके लिये सीमा शुल्क को बढ़ा दिया गया.
ट्रम्प के भारत दौरे के बारे में जिस बात का सबसे कम प्रचार किया गया, जबकि वही इस दौरे का मुख्य बिंदु था, वह है हथियार खरीदने का समझौता जिसके तहत भारत को अमरीका से 3 अरब डाॅलर मूल्य के हथियार खरीदने पड़े. इस प्रकार, जहां ट्रम्प हमारे खजाने पर डाका डाल रहे हैं, और भारतीय बाजार में अपना रास्ता बनाते जा रहे हैं, वहीं मोदी सरकार अमरीकी बाजारों में भारतीय निर्यातों एवं पहुंच को रोकने के लिये अमरीका जो कदम उठा रहा है, उनके खिलाफ लड़ने का कोई दम नहीं दिखा पा रही. 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रम्प ने भारतीय इस्पात एवं एल्युमिनियम उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया और भारतीय मालों के लिये वरीयता की सामान्य प्रणाली (जनरल विश्व बाजार शुल्क और सीमा सिस्टम ऑफ प्रेफरेन्स) जिसके चलते 23 भारतीय मालों को अमरीकी बाजारों में प्रवेश करने पर सीमा शुल्क से माफी मिल जाया करती थी, को हटा दिया.
कोई राजनयिक विश्व बाजार शुल्क और सीमा सहूलियत नहीं – अमरीकी फरमानों के सामने घुटनाटेक आत्मसमर्पण
मोदी सरकार ने अमरीकी दबाव के आगेे घुटने टेक दिये हैं और ईरान से तेल का आयात करना बंद कर दिया है. यह कदम न सिर्फ अमरीका के सामने आत्मसमर्पण था बल्कि इसका अर्थ कम से कम दो मामलों में गंभीर आर्थिक असुविधाओं को मोल लेना था: (क) हमने ईरान को डाॅलर के बजाय रुपयों में कीमत अदा करना शुरू कर दिया था, और (ख) ईरानी कच्चे तेल के शोधन में कम कीमत लगती थी क्योंकि हमारे तेल शोध्नागारों को ईरान से आये कच्चे तेल के शोधन के लिये डिजाइन कर लिया गया था.
मोदी, उनके समर्थकों और गोदी मीडिया जैसा प्रचार करते हैं, उसके ठीक विपरीत अमरीका ने हमेशा भारत को इस अंचल में अपने ही हितों की पूर्ति में इस्तेमाल किया है.
भारत को “विकसित” राष्ट्र का दर्जा देने के पीछे छिपी सच्चाई और मोदी ब्रिगेड की झूठी वाहवाही
अमरीकी सरकार द्वारा हाल में भारत को “विकासशील” राष्ट्र के दर्जे से उठाकर विकसित राष्ट्र की श्रेणी में रखने को मोदी सरकार की भारी उपलब्धि बताकर प्रचारित किया जा रहा है! ढेरोें भाजपाई मंत्रियों एवं समर्थकों ने इसके बारे में खूब शेखी बघारी है. मगर असलियत क्या है? भारत को विकसित राष्ट्र करार देकर अमरीका मुख्यतः अमरीकी बाजारों में भारतीय उत्पादों की पहुंच को सीमा शुल्क से मुक्त करने से इन्कार कर रहा है. इसके परिणामस्वरूप अमरीका में भारतीय उत्पादों की कीमत बढ़ जायेगी और इससे हमारे निर्यातों को नुकसान उठाना पड़ेगा. (दूसरी ओर, ट्रम्प ने भारत सफर के दौरान पत्रकारों को खुद बताया है कि उनके शासन में आने के बाद से भारत को अमरीकी उत्पादों के निर्यात में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि उच्च गुणवत्ता के अमरीकी ऊर्जा उत्पादों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ा है).
हमें यह नोट करना चाहिये कि भारत को विकासशील के दर्जे से विकसित राष्ट्र की कोटि में डालने का आधार उसका यह मनमाना मानदंड है कि विश्व बाजार में भारत का हिस्सा अमरीका द्वारा निर्धारित 0.5 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा को पार कर गया है! इसके विपरीत, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किसी देश को “विकसित” अर्थतंत्र मानने के लिये दी गई परिभाषा यह है कि उसकी प्रति व्यक्ति वार्षिक आय कम से कम 12,375 अमरीकी डाॅलर होनी चाहिये, और भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आमदनी अभी 2,000 अमरीकी डाॅलर है, जो किसी विकसित अर्थतंत्र के वैश्विक मानदंड से बहुत नीचे है.
साफ जाहिर है कि भारत पर “विकसित” अर्थतंत्र का ठप्पा लगाने के अमरीकी कदम का भारत की वास्तविक आर्थिक शक्ति और रहन-सहन के स्तर से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह अमरीका के इस निजी हित से प्रेरित है कि भारतीय उत्पादों की अमरीकी बाजारों में प्रतियोगिता क्षमता को घटा दिया जाये और अमरीका में भारत की व्यापारिक सुविधाओं को उससे छीन लिया जाये.
ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारतीयों के खिलाफ बारम्बार उठाये गये कदम और एच-1 बी वीजा में कटौती
ट्रम्प प्रशासन भारतीय पेशेवरों के लिये अमरीका में काम करना लगातार ज्यादा से ज्यादा कठिन करता जा रहा है. यह चीज एन-1 बी वीजा के लिये नियमों में लाये गये बदलाव से बिल्कुल स्पष्ट है जो अत्यंत उच्च मान के कुशल पेशेवरों को अमरीका में काम करने की अनुमति देता है. 2017 में ट्रम्प सरकार ने ‘अमरीकी माल खरीदो, अमरीकियों को रोजगार दो’ की एक नीति बनाई जिसने भारतीय पेशेवरों के लिये अमरीका में रोजगार हासिल करना और कठिन बना दिया, इस निषेधात्मक कदम के परिणामस्वरूप एच-1 बी वीजा देने से इन्कार किये जाने की दर 2015 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 15 प्रतिशत हो गई. एच-1 बी वीजा प्राप्त करने वाली भारतीय आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) कम्पनियों का हिस्सा 2016 में 51 प्रतिशत से घटकर 2019 में 24 प्रतिशत रह गया. जो लोग पहले से अमरीका में काम कर रहे हैं, उनके लिये एच-1 बी वीजा की अवधि बढ़ाने से इन्कार किये जाने की दर 2016 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 18 प्रतिशत हो गई.
ये आंकड़े चीख-चीखकर इस तथ्य को बता रहे हैं कि ट्रम्प ने भारतीय नागरिकों के लिये अमरीका में काम करना और मुश्किल बना दिया है. ट्रम्प ने अमरीका में जिस किस्म की नफरत और अन्य लोगों के प्रति विद्वेष के उन्माद को भड़काया है, उसकी लपट के शिकार भारतीय भी हुए हैं. इसके बावजूद मोदी सरकार और उसके समर्थक इस मामले में एक लफरज तक जबान से नहीं निकालते.
ट्रम्प ने बारम्बार कहा है कि वे भारत से खुश नहीं हैं लेकिन मोदी उनके दोस्त हैं. भारत और आम भारतीयों के लिये इसका अर्थ क्या है? अंततः जो बात इन दोनों नेताओं को एकताबद्ध करती है वह है उनके द्वारा अपने-अपने देश में नफरत भड़काना, विभाजनकारी नीति पर चलना और अन्य लोगों के खिलाफ उन्माद फैलाना. और इस सब की विडम्बना तो देखिये – जो कभी अपने-आपको अति राष्ट्रवादी घोषित करते नहीं अघाते, और दूसरों की हर आवाज को “राष्ट्र-विरोधी” कहकर तिरस्कृत करते हैं, वे ही ट्रम्प के फरमानों के सामने आश्चर्यजनक रूप से विनयपूर्वक घुटने टेक रहे हैं.
हमें महज मीडिया का तमाशा रचने के लिये ट्रम्प के भारत सफर के दौरान करदाताओं के पैसों की सम्पूर्ण फालतू बरबादी का अवश्य ही पर्दाफाश करना होगा. हमें ट्रम्प प्रशासन की सनक और मन की मौज के आगे मोदी सरकार के कायरतापूर्ण आत्मसमर्पण को भी खारिज करना होगा और उसका पर्दाफाश करना होगा.