अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि जब केंद्र ने सभी ईंधन करों का 68 प्रतिशत ले लिया है तब भी प्रधान मंत्री उच्च ईंधन की कीमतों अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष के लिए राज्यों को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
पश्चिम का सामना करना पड़ जबकि खाना पकाने
वास्तु के अनुसार उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ मुंह करके खाना पकाने (vastu shastra kitchen) से घर की सुख-शांति भंग होती है, इससे घर में लड़ाई-झगड़े अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष और कलह की संभावना बढ़ती है। इसके अलावा वास्तुशास्त्र में कहा जाता है कि उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के खाना बनाने से बिजनेस को लगातार नुकसान होता है साथ ही संपत्ति को हानि होती है।
और दक्षिण दिशा की तरफ चेहरा कर खाने पकाने से घर (vastu shastra for home) की महिलाएं परेशान रहती है, उन्हें बार-बार डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए घर में सुख-शांति बनाएं रखने और रोगों से बचे रहने के लिए पूरब दिशा की ओर मुंह करके खाना बनाना सबसे अच्छा माना जाता है।
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Best Vastu Shastra Kitchen Tips :
सम्बन्धित प्रश्न
Kitchen Mein gas Uttar ki or Rakha hoga to kya upay karna chahie
Agar khana banate hue muh west side hi karna pad jaye to vastu upay
Dakshin main mukh karke khana banate hai to sahi hai ya galt
Makan ka Mukh Paschim Disha Mein Hai To kitchen kahan per Hona chahie
Paschim disha ki aur khana pakana sahi hai ya nahi
Agar dachin mukh Karke Khana banana parta hai Kuch upay batate
खाना बनाए समय मुँह पश्चिम दिशा में रहता है क्या उपाय करे . पकाने के स्थान परिवर्तन का कोई रास्ता नहीं है
Pachim disha me muha kar ke khana bna sakte hai agar ghar me jagh n ho to
पश्चिम दिशा में मुंह करके खाना बना सकते हैं क्या क्योंकि और कोई विकल्प है नहीं
प्रश्न 3. लॉर्ड कॉर्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त के गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर - लॉर्ड क्लाइव और वारेन हेस्टिंग्स ने अच्छी शासन व्यवस्था स्थापित नहीं की थी। अतः शासन व्यवस्था में सुधार करने , विशेष रूप से राजस्व व्यवस्था को अच्छी प्रकार स्थापित करने के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने लॉर्ड कॉर्नवालिस को भारत भेजा। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने सर जॉन शोर की सहायता से भू-राजस्व व्यवस्था स्थापित ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष नहीं की , वरन् अंग्रेजी साम्राज्य की सुरक्षा के लिए अंग्रेज भक्त जमींदारों की फौज भी इकट्ठी कर दी। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने गवर्नर-जनरल के रूप में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए , परन्तु उसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था ' स्थायी बन्दोबस्त ' या ' इस्तमरारी बन्दोबस्त ' ।
लॉर्ड कॉर्नवालिस स्वयं जमींदार वर्ग से सम्बन्धित था और कम्पनी के डायरेक्टर भी जमींदारों से कोई समझौता करने पर विचार कर रहे थे। कॉर्नवालिस ने सरकार के लिए निश्चित राजस्व और प्रजा की सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से जमींदारों को विरासत के आधार पर भूस्वामी मानने का विचार स्थायी बन्दोबस्त के रूप में क्रियान्वित किया।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण
(1) इस भू-व्यवस्था ने जनता को निश्चितता प्रदान कर अनिश्चितता की स्थिति से पूर्ण रूप से उबार दिया। जमींदारों को अपनी जमीन एवं लगान , दोनों के बारे में पता था। उसे पता था कि लगान का भुगतान कब , किसे एवं किस प्रकार करना है।
(2) जमीदारों ने कृषि कार्यों में रुचि लेना आरम्भ कर दिया , क्योंकि कृषि उत्पादन में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष होने वाली वृद्धि का लाभ उन्हीं को मिलना था।
(3) कृषि में उन्नति होने से उद्योग और व्यापार की भी प्रगति हुई।
(4) सरकार को स्पष्ट पता था कि उसे लगान से कितनी आय होनी है। इस आधार पर सरकार अपनी योजनाएँ बना सकती थी।
(5) सरकार ने लगान वसूली एवं स्थायी प्रशासनिक बोझ को जमींदारों पर डालकर स्वयं को अन्य कार्यों के लिए क स्थायी बन्दोबस्त के दोष
स्थायी बन्दोबस्त अनेक अच्छाइयों से परिपूर्ण था , परन्तु उसमें अनेक दोष भी विद्यमान थे। इस व्यवस्था के सम्बन्ध में बेवरिज ने लिखा था , " केवल जमींदारों के साथ समझौता करके और किसानों के अधिकार को पूर्णतया भुलाकर एक महान् भूल और अन्याय किया गया।"
इस व्यवस्था के प्रमुख दोष अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष निम्नलिखित थे
(1) इस व्यवस्था में लगान की मात्रा स्थायी थी। लगान की राशि बहुत अधिक होने के कारण किसानों को अत्यन्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। लगान न देने पर किसानों से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष उनकी भूमि छीन ली जाती थी।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष जमींदार लगान की राशि अपने ठाट-बाट एवं ऐशो-आराम पर खर्च करते थे। इस कारण किसानों की दशा अत्यन्त दयनीय होती गई , क्योंकि किसानों की भूमि की उपज बढ़ाने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए थे।
(3) किसानों को जमींदारों की दया दृष्टि पर छोड़ दिया गया। जमींदार प्रशासनिक दृष्टि से पूर्णतया अयोग्य थे और किसानों पर अत्याचार करते थे। जमींदारों के डर के कारण किसान उसकी शिकायत भी न कर पाते थे।
(4) सरकार लगान से प्राप्त धनराशि का उपयोग जन-कल्याण में नहीं करती थी , वरन् उसे ब्रिटिश सरकार के प्रशासन पर खर्च किया जाता था।
(5) खेती में उपज की वृद्धि होने का लाभ न तो किसानों को मिलता था और न ही सरकार को , बल्कि इस लाभ को जमींदार हड़प कर जाते थे।
स्पष्ट है कि इस व्यवस्था से न तो किसानों को लाभ पहुँचा और न ही सरकार को , बल्कि इस व्यवस्था के द्वारा जमींदार किसानों के स्वामी बन गए और उनके परिश्रम से फलते-फूलते रहे। इसी वर्ग ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अंग्रेजों का साथ देकर भारत को और अधिक दिनों तक गुलाम बनाए रखा। इस प्रकार इस व्यवस्था के द्वारा एक छोटे से वर्ग (जमींदार) के हितों के लिए जनहित की बलि दे दी गई।