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मूल्य नीति

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दृष्टिकोण,मिशन व बुनियादी मूल्य

साँई भारत का दृष्टिक्षेत्र यह दर्शाता है कि हम कुछ बनने के लिए क्या अभिलाषा करते हैं। हम वैश्विक नेता बनने और सार्वजनिक क्षेत्र की लेखापरीक्षा तथा लेखाकरण में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सर्वोतम अभ्यास के सर्जक बनने का प्रयास करते हैं और स्वतंत्र, विश्वसनीय, लोक वित्त और अभिशासन पर संतुलित और समय से रिपोर्टिंग के लिए मान्य होने के लिए प्रयास करते हैं।

हमारा मिशन वर्तमान भूमिका को प्रस्तुत करता है और वर्णन करता है कि हम आज क्या कर रहे है। भारत के संविधान द्वारा अधिदेशित उच्च गुणवत्ता लेखा परीक्षण और लेखांकन के माध्यम से हम जवाबदेही, पारदर्शिता और सुशासन को उन्नत करते हैं और अपने हितधारकों, विधानमण्डल, कार्यकारिणी और आम जनता को स्वतंत्र आश्वासन प्रदान करते हैं कि लोक निधियों का उपयोग दक्षता से और अभिप्रेत उद्देश्यों के लिए किया जाता हैं।

बुनियादी मूल्य

हमारे बुनियादी मूल्य उन सभी के लिए मार्गदर्शक बीकन हैं जो हम करते है और हमें हमारे मूल्य नीति प्रदर्शन, स्वतंत्रता, निष्पक्षता, अखंडता, विश्वसनीयता व्यावसायिक उत्कृष्टता, पारदर्शिता, और सकारात्मक सोच का आकलन करने के लिए बेंचमार्क देते हैं।

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बाजार के प्रतिस्पर्धी बनने तक न्यूनतम समर्थन मूल्य जरूरी : नीति आयोग सदस्य

नयी दिल्ली, छह जुलाई (भाषा) नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बुधवार को कहा कि कृषि फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल न हो जाए, लेकिन इसे खरीद के अलावा अन्य किसी माध्यम से दिया जाना चाहिए। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और इक्रियर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘कृषि बाजारों को दुरुस्त करना’ विषय पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए - चंद ने कहा, ‘‘किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देने का एक उपाय मूल्य अंतर का भुगतान पेमेंट (डीपीपी)

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और इक्रियर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘कृषि बाजारों को दुरुस्त करना’ विषय पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए - चंद ने कहा, ‘‘किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देने का एक उपाय मूल्य अंतर का भुगतान पेमेंट (डीपीपी) है। लेकिन उन्होंने आगाह किया कि एक बार क्रियान्वयन में आने के बाद डीपीपी को बंद नहीं किया जा सकता।’’

डीपीपी में चुनिंदा फसलों पर किसानों को एमएसपी और संबंधित फसल के बाजार मूल्य के अंतर का भुगतान किया जाता है।

उन्होंने कहा कि डीपीपी को मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में लागू किया गया है।

एमएसपी न्यूनतम मूल्य है जिसपर सरकार खरीद करती है। एमएसपी का निर्धारण 22-23 फसलों के लिए किया मूल्य नीति जाता है। चावल और गेहूं बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली फसलें हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ मामलों में कीमतों में उतार-चढ़ाव और बाजार में इसकी बहुतायत होने की स्थिति में एमएसपी उचित होता है। मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण यह है कि हम किसानों को एमएसपी कैसे देते हैं। . एमएसपी तबतक होना चाहिए जबतक बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल नहीं हैं। लेकिन एमएसपी खरीद के अलावा अन्य माध्यमों से दिया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि एमएसपी को डीपीपी पद्धति के माध्यम से दिया जा सकता है लेकिन इसे लागू करने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता है।

चंद ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसपर विस्तृत प्रस्तुति दी है।

उन्होंने यह भी अनुमान लगाया है कि खुले बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर लगभग 12-15 प्रतिशत का होता है।

नीति आयोग के सदस्य ने यह भी कहा कि कृषि के संबद्ध क्षेत्र मत्स्य, डेयरी और पशुपालन में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम है। ये क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों में मत्स्य पालन में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गई है। इसी तरह डेयरी और पशुधन क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया है। कृषि फसलों में गैर-एमएसपी फसलें और बागवानी फसलें दूसरों की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ी हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसे देखते हुए भविष्य में जो संभावना बनती दिख रही है, वह सरकारी फसलें (एमएसपी-निर्धारित फसलें) बनाम बाजारी (वाणिज्यिक) फसलों’’ की होगी। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट बाजारी फसलों में नवाचार व खोजों में रुचि दिखा रहे हैं।

एमएसपी देने की डीपीपी पद्धति पर चंद के विचार का विरोध करते हुए पूर्व कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने कहा, ‘‘मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि खुले बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच 15-20 प्रतिशत का अंतर है। आपने खेत पर कीमतों को ध्यान में नहीं रखा है। एमएसपी समाधान नहीं हो सकता। मैं किसानों की आय के दृष्टिकोण का समर्थन करता हूं और हमें बाजार में बाधाओं को दूर करने की जरूरत है।’’ बहुगुणा वर्तमान में एनसीडीईएक्स के चेयरमैन और जनहित निदेशक हैं।

आईटीसी समूह के कृषि और आईटी कारोबार के प्रमुख एस शिवकुमार ने कहा, ‘‘हम एक मांग-आधारित उत्पादन प्रणाली में बदलाव की प्रक्रिया में हैं। आज हम जिस परेशानी का सामना कर रहे हैं वह इसलिए कि हम अभी भी बदलाव के दौर में हैं। हम पुराने माध्यमों, संस्थाओं और कानूनों के जरिये आज और कल की जरुरतों का प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि कृषि कानून इस दिशा में एक कदम था जो इस बदलाव में मदद करता। लेकिन इन कानूनों को वापस ले लिया गया।

सीआईएसएफ के लिए विजन, मिशन, आदर्श वाक्य, लोकाचार, नैतिकता और मूल्यों पर नीति

1969 में एचईसीए रांची में एक बड़ी आग की घटना के बाद केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अस्तित्व में आया। जिस अद्वितीय अधिदेश के साथ ये बल अस्तित्व आया है यानी सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों की संपत्ति एवम् उनके कर्मचारियों की सुरक्षाए फल स्वरूप पिछले ५० वर्षों में बल ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। सुरक्षा की गतिशील स्वरूप की बदलती मांगो के साथ में चलते हुए एबल विकसित हुआ है तथा अपने द्वारा प्रधान की गई पेशेवर सेवाओं को पुनः उन्मुख एवम् उनके स्वरूप का अद्यतन तथा स्वयं का कायापलट करते हुए एउपक्रम सुरखा बल से बहु. प्रतिभावानए बहु. कार्यए बहु. आयामी बल बना है जो कि भविष्य की नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।

समूह-II का गठन बल मुख्यालय द्वारा विभिन्न नीति बनाने के लिए किया गया था जैसे:

जिससे कि सीआईएसएफ के सभी बल सदस्य इन्हे आत्मसात तथा अभ्यास कर भविष्य की सभी चुनौतियों को आत्मविश्वास और व्यावसायिकता के साथ सामना कर सकें।

एक प्रमुख मूल्य नीति संगठन के रूप में जिसके पास एक बड़ा कार्य बल हैए हमें अपने विजनए मिशनए आदर्श वाक्यए लोकाचारए नैतिकता और मूल्यों को परिभाषित करना चाहिए और उन्हें एक नीति दस्तावेज के रूप में लिखित रूप में रखना चाहिएए ताकि वह एक दिशानिर्देश और संदर्भ बिंदु के रूप में सदस्यों को बताये कि उनसे क्या अपेक्षा हैए कैसे कार्य करें और व्यवहार करें और संगठन को उसका चरित्र और पहचान दें। वही संगठन के उद्देश्यए भावना और चरित्र को परिभाषित करते हैं।

लोकाचार, मूल्य और नैतिकता की नीति की आवश्यकता

सीआईएसएफ अपने अस्तित्व का 50 वां वर्ष मना रहा है यानि गोल्डन जुबली वर्ष मना रहा है। इस अवसर पर यह महसूस किया जाता है कि लोकाचार मूल्य और नैतिकता पर एक नीति और स्पष्ट दिशा स्थापित करने के लिए एक दृष्टि कथन हमारे विचार को सुदृढ़ करने और दिशा प्रदान करने के लिए आवश्यक है।

मूल्य नीति समूहिक निर्णय की प्रक्रिया: पवार

महंगाई के मुद्दों पर आलोचनाओं के केंद्र में रहे केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने रविवार को कहा कि कीमतों पर नीतिगत निर्णण मंत्रीमंडल की ओर से सामूहिक रूप से लिया जाता है जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं.

  • पुणे,
  • 24 जनवरी 2010,
  • (अपडेटेड 24 जनवरी 2010, 11:05 PM IST)

महंगाई के मुद्दों पर आलोचनाओं के केंद्र में रहे केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने रविवार को कहा कि कीमतों पर नीतिगत निर्णण मंत्रीमंडल की ओर से सामूहिक रूप से लिया जाता है जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं.

पवार ने संवाददाताओं से कहा ‘‘इस प्रक्रिया में शामिल होने वाला मैं अकेला व्यक्ति नहीं हूं. मूल्य नीति पर प्रधानमंत्री और हम सब मिलकर निर्णय करते हैं. इसमें विशेषज्ञों की एक समिति होती है जो मंत्रिमंडल को सलाह देती है और मंत्रिमंडल अंतिम निर्णय करती है.’’ पवार से कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर कांग्रेस की मूल्य नीति ओर से सहयोग नहीं मिलने के आरोपों के बारे में पूछा गया था.

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