क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा?

इमरान पर पाकिस्तान चुनाव आयोग से जानकारी छिपाने का आरोप
संकटग्रस्त दुनिया में भारत
भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी भी संकटग्रस्त हो लेकिन वह किसी भी अन्य अर्थव्यवस्था से बेहतर नजर आ रही है। कीमतों से शुरुआत करते हैं। अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 8.5 फीसदी पर है जो 40 वर्षों का उच्चतम स्तर है। यूरो क्षेत्र की बात करें तो वहां यह 7.5 फीसदी है। ये वो अर्थव्यवस्थाएं हैं जहां औसत मुद्रास्फीति दो फीसदी से कम रहा करती थीं। भारत में हम बढ़ती पेट्रोल और डीजल कीमतों को लेकर शोक मना सकते हैं और खानेपीने की कुछ चीजों की महंगाई को लेकर भी। उदाहरण के लिए नीबू की कीमतें कुछ थोक बाजारों में 300 से 350 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई हैं। स्वाभाविक बात है कि रिजर्व बैंक की आलोचना बढ़ी है कि क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? उसने शुरुआत में ही मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर जोर नहीं दिया और अब वह तय दायरे से बाहर हो चुकी है। इसके बावजूद भारत में उपभोक्ता मूल्य महंगाई 7 फीसदी से कम ही है। यदि ब्रिक्स देशों से तुलना की जाए तो ब्राजील में यह 11.3 फीसदी और रूस में 16.7 फीसदी है। केवल चीन ने ही मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा है और वहां यह महज 1.5 फीसदी है (सभी आंकड़े द इकनॉमिस्ट द्वारा जुटाए गए हैं)।
डॉलर चढ़ा, लेकिन फरवरी 2022 के बाद से सबसे खराब सप्ताह के लिए तैयार क्योंकि बाधाएं बनी हुई हैं
विदेशी मुद्रा 20 मई 2022 ,09:23
© Reuters
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Investing.com - डॉलर शुक्रवार की सुबह एशिया में ऊपर था, <<समाचार-2828303||फरवरी 2022 की शुरुआत के बाद से अपने सबसे खराब सप्ताह के लिए नेतृत्व किया>> क्योंकि अमेरिकी ट्रेजरी ने ग्रीनबैक के 10%, 14-सप्ताह के उछाल के बाद वापसी और थकान की पैदावार की।
पेट्रो डॉलर के वर्चस्व को ध्वस्त करने की योजना पर काम कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी
जिस तरह आपको अस्तित्व बचने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है उसी तरह विश्व चलाने के लिए नागरिकों को संसाधन और सुविधा मुहैया करने के लिए तेल की आवश्यकता होती है। तेल पर करीब करीब अरब देशों का एकाधिकार है और तेल के इस क्रय-विक्रय पर पश्चिमी देशों का। भले ही वैश्विक तेल व्यापार का केंद्र पश्चिम से एशिया में स्थानांतरित हो गया हो, किन्तु तेल व्यापार अभी भी पश्चिमी मुद्रा मुख्यतः डॉलर के माध्यम से संचालित होता है।
इसका मतलब है कि कीमतें पश्चिमी बेंचमार्क का उपयोग करके निर्धारित की जाती हैं और विनिमय का माध्यम भी डॉलर रहता है। यह विसंगति एशियाई देशों को नुकसान में डालती है जो समय के साथ और भी बदतर होती जाएगी क्योंकि तेजी से विकास की सीढ़ी चढ़ते एशियाई देशों में अब तेल की मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।
मुद्रा की मजबूती अमेरिकी डॉलर से पता लगाया जाता है
इसके साथ साथ मुद्रा कितनी मजबूत है इसका माप इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी डॉलर के सामने इसका मूल्य कैसा है? इसके साथ ही दुनिया भर के तेल व्यापार में इसके प्रभुत्व का माप कितना बड़ा है? इन दोनों घटनाओं ने मिलकर पेट्रो डॉलर नामक शब्द को जन्म दिया। पिछले कुछ दशकों से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पेट्रो डॉलर को हटाना लगभग असंभव सा था। लेकिन, अमेरिका और पश्चिमी देशों के इस डॉलर जनित आर्थिक वर्चस्व को ताड़ने के लिए एक शानदार योजना है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे नमो सरकार विश्व के आर्थिक व्यवस्था डॉलर के वर्चस्व को ध्वस्त करने वाले है। इसके लिए उन्होंने भारत की वित्तीय प्रणाली में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की क्षमता का उद्घोष भी कर दिया हैं।
भारत आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस उद्देश्य के लिए, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालयों ने एक सप्ताह तक चलने वाले समारोह का आयोजन किया गया है। आयोजन के उद्घाटन के दौरान, पीएम मोदी ने जोर देकर कहा विश्व बाजार में भारत की वित्तीय प्रणाली के उत्पादों की स्थिति को बढ़ाने के लिए, भारत को अपने वित्तीय समावेशन प्लेटफार्मों के बारे क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। उन्होंने अन्य देशों में अपनी सेवाओं क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? का विस्तार करके भारत की घरेलू सफलता को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बदलने की आवश्यकता पर बल दिया।
पेट्रो डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इंजन है
रूस, चीन और भारत के प्रतिरोध को देखते हुए, अमेरिका के लिए पेट्रो डॉलर की कमाई पर अपनी अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेट्रो डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इंजन है। तथ्य यह है कि अधिक से अधिक देश अब द्विपक्षीय व्यापार के लिए डॉलर को त्याग रहे हैं, इसका मतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका डॉलर के व्यापार से उत्पन्न होने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा खो देगा। इस नुकसान का एक बड़ा हिस्सा पेट्रो डॉलर के रूप में होगा, क्योंकि आधुनिक समय में एशिया पश्चिमी देशों के बजाय वैश्विक तेल व्यापार का केंद्र है। और वह भारत ही होगा जो इस खेल के नियम को निर्धारित करेगा।
हालांकि भारत के लिए आगे की राह आसान नहीं क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? है। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा खाली की जा रही जगह को भरने के लिए चीन से लड़ने के अलावा वित्तीय बाजार में भारत की वैधता अभी भी देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। वर्तमान क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? में, भारतीय वित्तीय बाजार में UPI और Rupay Debit card जैसे अन्य उत्पादों का डंका बज रहा है लेकिन हमने अंतरराष्ट्रीय बाजार में खुद का विज्ञापन नहीं किया है। हालांकि रुपे ने कुछ पहल की है, लेकिन विश्व यूपीआई की मार्केटिंग अभी भी अज्ञात है। इसके लिए जब भारत के वित्तीय स्पेक्ट्रम के उत्पादों को उचित बाजार हिस्सेदारी हासिल करनी होगी, भारत क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार को चलाने की स्थिति में होगा। और मेरा विश्वास करिए, यह बहुत तेजी से हो सकता है।
Russia-Ukraine War: आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे रूस ने किया पलटवार, अमेरिका-कनाडा जैसे देशों के प्रतिनिधियों पर लगाया बैन
- News18Hindi
- Last Updated : April 14, 2022, 16:29 IST
यूक्रेन पर आक्रमण करने की वजह रूस पर न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ने बल्कि पश्चिमी और यूरोप के कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. अब रूस भी जवाबी कार्रवाई करते हुए ऐसे देशों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है. रूसी न्यूज एजेंसी, इंटरफैक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मास्को अमेरिकी कांग्रेस के 398 सदस्यों और 87 कनाडाई सीनेटरों पर प्रतिबंध लगाने की मंजूरी दे रहा है. इंटरफैक्स के मुताबिक, रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि निकट भविष्य में जवाबी कार्रवाई करने की योजना के तहत कुछ और घोषणाएं की जाएंगी, जिसकी लिस्ट बड़ी हो सकती है.
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विपक्ष को भरोसा- कई सांसद इमरान के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं
इस्लामाबाद में पीपीपी की रैली के बाद 8 मार्च को क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? विपक्षी दलों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था. विपक्ष को भरोसा है कि उसके प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जाएगा क्योंकि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कई सांसद पीएम इमरान खान के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने शुक्रवार को सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि जैसे-जैसे महत्वपूर्ण अविश्वास प्रस्ताव सत्र नजदीक आता जा रहा है और राजनीतिक गठजोड़ में अनिश्चितता बनी हुई है, सत्ताधारी दल के कम से कम 50 मंत्री राजनीतिक मोर्चे से लापता हो गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 से अधिक संघीय और प्रांतीय मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है क्योंकि विपक्ष ने इमरान खान के खिलाफ संकट खड़ा करना शुरू कर दिया है. बढ़ते दबाव के बीच इमरान खान ने बुधवार को कहा था कि वह किसी भी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे.