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सिगनल को उपलब्ध कराने वाले

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रेलमंत्री पवन कुमार बंसल ने रेल बजट 2013-14 लोकसभा में 26 फरवरी 2013 को प्रस्तुत किया. इस बजट में प्रस्तावित नवीनतम पहल निम्नलिखित हैं:

Satellite Internet क्या है? क्या यह 5G से तेज़ है?

आज के समय में इंटरनेट व्यक्ति की सिगनल को उपलब्ध कराने वाले रोजमर्या की जिंदगी का अभिन्न भाग बन गया है। परन्तु आज भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है अगर सिगनल को उपलब्ध कराने वाले है भी तो उसकी स्पीड बहुत ख़राब है, आज के 4g-5g के ज़माने में अभी भी ऐसे क्षेत्र 2g की स्पीड पर ही अटके हुए हैं।

देश में इंटरनेट की पहुंच को फाइबर केबल के जरिये बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं ऑप्टिकल फाइबर के द्वारा स्पीड में इजाफा तो होगा किन्तु इसे हर स्थान पर पंहुचापाना एक जटिल कार्य है। इसी जटिलता को दूर करने के लिए satellite internet एक माध्यम बन सकता है। आने वाले समय में एलन मस्क का स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) भी भारत आने की संभावना है। साथ ही भारतीय एयरटेल भी इसी माध्यम से इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए प्रयास कर रही है।

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सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) की आवश्यकता क्यों?

कोरोना में लॉकडाउन के दौरान जब कॉलेज, स्कूल बंद कर दिए गए तो इस समय ऑनलाइन क्लासेज शुरू की गयी थी। उस दौरान ऐसी खबरें सामने आ रही थी कि बच्चों को इंटरनेट की पहुंच के लिए ऊँचे स्थानों पर जाना पड़ रहा था जहाँ नेट के सिगनल मिल जाते हों। ऑनलाइन एग्जाम और क्लासेज के लिए बच्चों को बहुत सी परेशानियां उठानी पड़ती थी। अतः इंटरनेट की उपलब्धता के लिहाज से दूरदराज वाली ऐसी जगह जहाँ हाई स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता नहीं है। उन स्थानों पर सैटेलाइट इंटरनेट की पहुंच हो सकती है।

space x के मालिक एलन मस्क ने कहा है कि स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट जल्द ही भारत आ सकता है। इसके लिए सरकार से अनुमति लेने की प्रक्रिया चल रही है। स्टारलिंक प्रोग्राम की शुरुआत space x के द्वारा की गयी है जिसमें सैटेलाइट के समूहों द्वारा इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट क्या है?

यह एक इंटरनेट प्रोजेक्ट है, जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में इंटरनेट सिगनल को उपलब्ध कराने वाले पहुंचना है जहाँ अभी भी इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) में आसानी इस रूप में है कि इसके लिए बड़े ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए ऑप्टिकल फाइबर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसमें लेज़र बीम का इस्तेमाल करके डाटा ट्रांसफर किया जाता है।

स्टारलिंक की ऑफिसियल वेबसाइट के अनुसार $99 में इसकी प्री- बुकिंग शुरू हो चुकी है। यह सुविधा आम लोगों के लिए है अतः कीमतों में बदलाव हो सकता है।

यह तकनीक कार्य कैसे करेगी ?

स्टारलिंक सैटेलाइट तकनीक के अंतर्गत कृत्रिम उपग्रहों का उपयोग किया जाता है। इन उपग्रहों के माध्यम से ही इंटरनेट सेवा को लोगों तक पहुंचाया जाता है। इसके लिए लोअर ऑर्बिट सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है। लवर ऑर्बिट की वजह से लेटेंसी दर कम हो जाती है। लेटेंसी दर से तात्पर्य उस समय से है जो डाटा को एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक पहुंचने में लगता है।

लेटेंसी की वजह से इंटरनेट की स्पीड में बढ़ोत्तरी होती है जिससे ऑनलाइन बफरिंग, गेमिंग और वीडियो कालिंग की क्वालिटी बेहतर होती है। स्टारलिंक सेवा को इंस्टॉल करने के लिए यूजर को एक डिश का इस्तेमाल किया जाता है जो मिनी सैटेलाइट से सिगनल प्राप्त करता है। यह घरों में प्रयोग की जाने वाली डिस टीवी सर्विस की तरह ही है।

जून 2021 तक आंकड़ों के अनुसार स्टारलिंक सैटेलाइट की संख्या 1500 से अधिक थी। इसकी वजह से पृथ्वी के चारों ओर कृत्रिम उपग्रहों का जाल बन गया है।

यह पारम्परिक इंटरनेट से अलग कैसे ?

भारत में तेज़ गति की इंटरनेट सेवा के लिए अधिकतर उपभोक्ता फाइबर आधारित इंटरनेट पर निर्भर हैं। जो सैटेलाइट इंटरनेट की तुलना में उच्च गुणवत्ता के साथ हाई स्पीड इंटरनेट सेवा देती है। इस चुनौती सिगनल को उपलब्ध कराने वाले में जो स्टारलिंक सेवा को अलग बढ़त प्रदान करती है वह यह है कि इसके लिए किसी तारनुमा कनेक्शन की आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही इसे दुनिया में कहीं से भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

अभी स्टारलिंक की इंटरनेट स्पीड 50 Mbps से 150 Mbps के बीच है। जिसे आगे चलकर 300 Mbps तक पहुंचाया जायेगा।

सैटेलाइट इंटरनेट की 5G से तुलना

स्पीड के मामले में 5G स्टारलिंक से आगे है। क्यों कि इसे टॉप सेलुलर इंफ्रास्ट्रक्चर पर बनाया गया है। स्टारलिंक की तुलना में 5G कई गुना अधिक तेज़ी से डाटा ट्रांसफर करने में सक्षम है। किन्तु गांव देहात, कस्बों, छोटे शहरों या दूर दराज के क्षेत्रों में सैटेलाइट इंटरनेट एक बेहतर विकल्प हो सकता है। क्यों कि इसमें केबल्स के जाल, ओर सेलुलर टावर की आवश्यकता नहीं होती है।

इसके अलावा ऐसे क्षेत्र जहां भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। उन स्थानों के के लिए सैटेलाइट इंटरनेट एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) से फायदे

  • इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे कहीं से भी इस्तेमाल किया जा सकता है। और न कोई तार टूटने जैसी आम समस्या।
  • दूरदराज के क्षेत्रों, पहाड़ों, जंगलों में भी इंटरनेट का इस्तेमाल हो सकेगा जहाँ सिगनल न आने की समस्या सबसे अधिक रहती है।
  • किसी भी प्रकार की आपदा में अधिकाशतः इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान होता है। इंटरनेट, बिजली की लाइन टूट जाती हैं। किन्तु सैटेलाइट इंटरनेट में इस प्रकार की समस्या नहीं होंगी। अगर किसी प्रकार की समस्या आती है तो भी उसे जल्दी से रिकवर किया जा सकता है।

सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) से नुकसान

  • इस इंटरनेट में फ़िलहाल लेटेंसी की समस्या है।
  • यूजर को VPN सपोर्ट नहीं मिलेगा।
  • सैटेलाइट इंटरनेट के लिए आसमान साफ होना चाहिए। भारी बारिश और तेज़ हवा कनेक्शन को बाधित कर सकती हैं जिससे इंटरनेट की स्पीड प्रभावित होती है।

भारत में भारतनेट परियोजना के तहत गांव के स्तर पर इंटरनेट को पहुंचाने का प्रयास हो रहा। नार्थ ईस्ट और दूर दराज के क्षेत्र आज भी बहुत से प्रयास करने के बावजूद इंटरनेट सेवाओं से दूर हैं। ऐसे क्षेत्र जहाँ फाइबर केबल के जरिये इंटरनेट पहुंचना कठिन कार्य है उन जगहों पर सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) उत्तम विकल्प हो सकता है।

दक्षिण मध्य रेलवे

दक्षिण मध्य सिगनल को उपलब्ध कराने वाले रेलवे का गठन 2 अक्तूबर 1966 को भारतीय रेलों पर 9वीं क्षेत्रीय रेलवे के रूप में हुआ था. अपनी चालीस वर्षों की वचनबद्ध सेवा और परोगामी प्रगति करते हुए दक्षिण मध्य रेलवे ने, यात्रियों/ग्राहकों की आकांक्षाओ को पूरा करते हुए भारी परिवहन की एक आधुनिक प्रणाली के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनायी है। दक्षिण प्रायद्वीप में स्थित इस गतिशील संगठन का मुख्यालय सिकंदराबाद में है, जो आर्थिक रूप से उन्नत आंध्र प्रदेश राज्य, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु के भागों को सेवा प्रदान करता है।

भाप इंजन से चलनेवाली गा़ड़ियों और लकड़ी की सीटों के जमाने से लेकर अब दक्षिण मध्य रेलवेने अधिक क्षमता वाले डीजल और विद्युत इंजऩ, उच्च गति टेलीस्कोपिक पैसेंजर डिब्बे और उच्चतर धुरा भार मालडिब्बों, सभी महत्वपूर्ण मार्गों में उच्च क्षमता के रेलपथ, सालिड सिगनल को उपलब्ध कराने वाले स्टेट अंत:पार्शन युक्त बहु संकेती रंगीन सिगनल व्यवस्था व सूक्ष्मतरंग और डिजिटल संचार प्रणाली आदि अत्याधुनिक प्रणालियों को अपनाते हुए सिगनल को उपलब्ध कराने वाले एक लंबी यात्रा पूरी की है।

दक्षिण मध्य रेलवे का गठन, दक्षिण रेलवे से विजयवाड़ा और हुबली मंडल तथा मध्य रेल से सिकंदराबाद और सोलापुर मंडल को मिलाकर 2 अक्तूबर, 1966 को किया गया। प्रभावात्मक परिचालनिक नियंत्रण की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए फरवरी, 1978 में सिकंदराबाद मंडल को दो मंडलों अर्थात् सिकंदराबाद और हैदराबादके रूप में विभाजित किया गया।

दक्षिण मध्य रेलवे के नये गठित गुंटूर और नांदेड मंडलों में 1 अप्रैल, 2003 से कार्य आरंभ किया गया और हुबलीमंडल को नए गठित दक्षिण पश्चिम रेलवे में अंतरित किया गया. इस समय दक्षिण मध्य रेलवे पर छह मंडल विद्यमान है अर्थात्सिकंदराबाद, हैदराबाद, विजयवाडा, गुंटूर, गुंतकल और नांदेड, जिसकी लंबाई 5752 मार्ग कि.मी. है और इसमें से 1604 मार्ग कि.मी. को विद्यतीकृत किया गया है।

वर्षा से जलभराव और बाढ़ के वाकी-टाकी से फोटो खींचकर देंगे सूचना

वर्षा से जलभराव और बाढ़ के हालातों से निबटने प्रशासन ने तैयारी की है। सफाई दरोगा वाकी-टाकी से पहले जलभराव और बाढ़ के फोटो खीचकर बाद में इससे सूचना कलेक्टर,एडीएम और सीएमओ को देंगे। अभी हाल में कलेक्टर ने नपा के छह अधिकारियों को उच्च तकनीकि और और स्क्रीन युक्त वाकी-टाकी उपलब्ध करा दिए है। आगामी

वर्षा से जलभराव और बाढ़ के वाकी-टाकी से फोटो खींचकर देंगे सूचना

गुना(नवदुनिया प्रतिनिधि)। वर्षा से जलभराव और बाढ़ के हालातों से निबटने प्रशासन ने तैयारी की है। सफाई दरोगा वाकी-टाकी से पहले जलभराव और बाढ़ के फोटो खीचकर बाद में इससे सूचना कलेक्टर,एडीएम और सीएमओ को देंगे। अभी हाल में कलेक्टर ने नपा के छह अधिकारियों को उच्च तकनीकि और और स्क्रीन युक्त वाकी-टाकी उपलब्ध करा दिए है। आगामी दिनों में 15 सफाई दरोगओं से संपर्क कर स्थिति पर नियंत्रण कराने के लिए 15 वाकी-टाकी दिए जाएंगे। वाकी टाकी से संपर्क साधने में दिक्कत नहीं होगी, क्यों कि मोबाइल पर कई बार नेटवर्क की समस्या हो जाती है। कलेक्टर फ्रेंक नोबल ए और अपर कलेक्टर आदित्य सिंह ने शहर में स्वच्छता को लेकर अनूठी पहल की है। साथ ही गदंगी और जलभराव वाले क्षेत्रों की सघन निगरानी रखने तथा सिगनल को उपलब्ध कराने वाले जानकारी आदान प्रदान वह फोटो खीचने के लिए वाकी-टाकी नपा सीएमओ को दिए है। सीएमओ ईशाक धाकड़ ने छह वाकी-टाकी अतिक्रमण दस्ता प्रभारी और स्वच्छता निरीक्षकों को उपलब्ध कराए है। पहले चरण के बाद अब दूसरे चरण में इस वाकी-टाकी का प्रयोग सफाई दरोगा करेंगे। वाकी-टाकी में सिगनल के लिए एनटीने की आवश्यकता नहीं है। यह शहर के 37 वार्डों में कवर करने की क्षमता रखता है।

एक सूचना पर पहुंचेगा सफाई अमला,कलेक्टर भी करेंगे निगरानी

अपर कलेक्टर आदित्य सिंह ने बताया कि वाकी-टाकी के माध्यम से न तो संपर्क साधने में सफाई दरोगाओं को समस्या होगी। उधर 37 वार्डों में सफाई व्यवस्था सहित जल भराव से मुक्ति मिल जाएगी। वहीं अगर बाजार और कालोनियों में कोई कचरा फेंकता है, तो उसका फोटो खीचकर अधिकारियों को भेजा जाएगा, जिससे मौके पर ही चालानी कार्रवाई हो सकेगी।

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अतिक्रमण पर भी रहेगी नजर,स्वच्छता में होगा सुधार

शहर के वार्ड और बाजार में अगर कोई व्यक्ति सड़क या फिर शासकीय भूमि पर कब्जा करता है, तो इसकी निगरानी भी वाकी-टाकी से होगी। अतिक्रमण दस्ता प्रभारी कलेक्टर, अपर कलेक्टर और सीएमओ को फोटो खीचकर सूचना देंगे। जिससे अतिक्रमण पर भी रोक लग सकेगी।

शहर में जलभराव को रोकने और स्वच्छता को लेकर सफाई दरोगाओं से सीधा संपर्क हो सके। इसको लेकर पहले चरण में छह वाकी-टाकी नपा को उपलब्ध कराए हैं। दूसरे चरण में 15 सफाई दरोगाओं को भी वाकी-टाकी प्रदान किए जाएंगे। इस वाकी-टाकी से फोटो खींचकर और तत्काल सूचना भी दी जा सकती है।

रेल बजट 2013-2014 में प्रस्तावित नवीनतम पहल

रेलमंत्री पवन कुमार बंसल ने रेल बजट 2013-14 लोकसभा में 26 फरवरी 2013 को प्रस्तुत किया. इस बजट में प्रस्तावित नवीनतम पहल निम्नलिखित हैं.

रेल बजट 2013-14

रेलमंत्री पवन कुमार बंसल ने रेल बजट 2013-14 लोकसभा में 26 फरवरी 2013 को प्रस्तुत किया. इस बजट में प्रस्तावित नवीनतम पहल निम्नलिखित हैं:

हरित पहल
• सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता का उपयोग करने के लिए रेल ऊर्जा प्रबंधन कंपनी (आरईएमसी) की स्थापना करना.
• 75 मेगावॉट की क्षमता वाले पवन चक्की संयंत्रों की स्थापना करना और 1000 समपारों को सौर ऊर्जा से ऊर्जित करना.
• नई पीढ़ी के ऊर्जा कुशल विद्युत रेलइंजनों तथा ईएमयू का उपयोग करना.
• कृषि-आधारित और रि-साइकिल किए गए कागज का अधिक उपयोग करना और खान-पान में प्लास्टिक के उपयोग सिगनल को उपलब्ध कराने वाले पर प्रतिबंध लगाना.

सूचना प्रौद्योगिकी पहल
• यात्रियों एवं कर्मचारियों से संबंधित सेवाओं में आधार का उपयोग करना.
• 00:30 बजे से 23:30 बजे तक इंटरनेट टिकिटंग.
• मोबाइल फोन द्वारा ई-टिकिटंग.
• आरक्षण की स्थिति के संबंध में अद्यतन जानकारी देने के लिए एसएमएस अलर्ट योजना.
• रियल टाइम सूचना प्रणाली के अंतर्गत अधिक से अधिक गाड़ियों को शामिल करना.
• इंटरनेट रेल टिकिटंग में नेक्सट जनरेशन ई-टिकिटंग प्रणाली.
• नेक्सट जनरेशन ई-टिकट प्रणाली शुरू की जानी है, जिससे इस समय के प्रति मिनट 2000 की तुलना में 7200 टिकटों को जारी किया जा सकेगा तथा एकसाथ 1.20 लाख उपयोगकर्त्ताओं की तुलना में इससे 40000 रेल उपयोगकर्त्ताओं को हैंडल किया जा सकेगा.

रेल पर्यटन
• जम्मू एवं कश्मीर राज्य सरकार के सहयोग से मल्टी-मोडल ट्रेवल पैकेज की शुरूआत करना.
• रेलवे टिकट बुकिंग के समय रेल द्वारा यात्रा कर रहे तीर्थयात्रियों को माता वैष्णो देवी श्राइन के लिए सिगनल को उपलब्ध कराने वाले यात्रा पर्ची जारी करना.
• स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े स्थानों की यात्रा करने के लिए रियायती किरायों पर आजादी एक्सप्रेस नामक एक शैक्षणिक पर्यटक गाड़ी की शुरूआत करना.
• 7 और स्टेशनों यथा बिलासपुर, विशाखापट्नम, पटना, नागपुर, आगरा, जयपुर और बेंगलूरू पर एक्जीक्यूटिव लाउंज शुरू करना.

अन्य पहल
• स्वचालित ब्लॉक सिगनल सिस्टम पर ट्रेन सुरक्षा चेतावनी प्रणाली की शुरूआत करना.
• 160/200 किलोमीटर/प्रति घंटे की गति वाली सेल्फ प्रोपेल्ड दुर्घटना राहत गाड़ियों की शुरूआत करना.
• एन्टी क्लाइम्बिक फीचर वाले टक्कर-रोधी एलएचबी सवारी डिब्बे की शुरूआत करना.
• उत्कृष्ट माहौल और नवीनतम सुविधाएं तथा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए चुनी गई गाड़ियों में एक सवारी डिब्बे–अनुभूति की शुरूआत करना.

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