अनुगामी रोक

पत्र क्रमांक - 181 क्षपक मुनिराज की दैनन्दिनी
अज्ञ अंधकार को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले परमपूज्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल ज्ञानदीप प्रकाशनार्थ नमस्कार नमस्कार नमस्कार. हे गुरुवर ! जैसे ही आपने आचार्यपद का त्याग किया और नियम सल्लेखना व्रत को धारण किया, तब नूतन आचार्य के निर्देशन में आपकी दैनन्दिनी के बारे में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने ०८-११२०१५ भीलवाड़ा में बताया-
क्षपक मुनिराज की दैनन्दिनी
‘‘नियम सल्लेखना व्रत को देने के बाद नूतन आचार्यश्री के निर्देशन में प्रातः ७:३०-९:00 बजे तक आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी विरचित परमपूज्य समयसार ग्रन्थराज का स्वाध्याय चलता था। गाथाओं को निर्यापकाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज लयबद्ध पढ़ते थे उसका अर्थ गुरुदेव क्षपकराज ज्ञानसागर जी महाराज करते थे। दोपहर में २-४ बजे तक परमपूज्य शिवकोटी आचार्य विरचित पूज्य भगवती आराधना ग्रन्थराज का स्वाध्याय चलता था। जिसकी मूलगाथा एवं संस्कृत टीका को आचार्य महाराज पढ़ते थे और उसका भावार्थ क्षपक मुनिराज समझाते थे एवं बीच-बीच में विशेषार्थ भी बताते थे इस स्वाध्याय में ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक आदिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक सम्भवसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी, क्षुल्लक स्वरूपानंदसागर जी और कुछ समय तक ब्रह्मचारिणी दाखाबाई जी, ब्रह्मचारिणी मणिबाई जी, ब्र. सोहनलाल जी छाबड़ा (टोडारायसिंह), ब्र. विकासचंद अनुगामी रोक जी इत्यादि त्यागिगण एवं अनेकों श्रावक-श्राविकाओं के साथ पंण्डित श्री चंपालाल जी जैन विशारद भी नित्यप्रति ज्ञान लाभ लेते थे। शाम की सामयिक के पश्चात् रात्रि में श्रावक लोग वैयावृत्य करने के लिए आ जाते थे। तब श्रीमान् गम्भीरमल जी सेठी आध्यात्मिक भजन सुनाते थे। जिनमें दौलतराम जी, भूधरदास जी, द्यानतराय जी, बनारसीदास जी, भागचंद जी, जिनेश्वरदास जी, बुधचंद जी आदि पुराने कवियों के द्वारा रचित भजन हुआ करते थे। इसी प्रसंग में नसीराबाद के ताराचंद जी सेठी सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी ने भी भीलवाड़ा में बताया-
‘‘हम युवा लोग जिनमें श्री शान्तिलाल जी सोगानी, श्री प्रवीणचंद जी गदिया, श्री रतनलाल जी पाटनी, श्री सीताराम जी गदिया आदि कई लोग उनकी वैयावृत्य करने रात्रि में प्रतिदिन जाते थे। दिन में तो मुनि विद्यासागर जी और संघ के साधु वैयावृत्य करते थे। वैयावृत्य के समय पर श्रीमान् गम्भीरमल जी सेठी पुराने गीत एवं लावनियाँ सुनाया करते थे। कभी-कभी राजकुमार गदिया भी लावनियाँ सुनाया करते थे। तब आचार्य महाराज विद्यासागर जी भी सुना करते थे। एक दिन हम युवाओं ने उनसे पूछा-महाराज! आपको ये लावनियाँ समझ में आ जाती हैं क्या? तो आचार्यश्री बोले- ‘बार-बार सुनने से भाव समझ में आ जाता है और शब्दकोश तैयार हो जाता है। इस प्रकार आपके प्रिय निर्यापकाचार्य आपकी सेवा में चौबीसों घण्टे लगे हुए थे और आपके आध्यात्मिक भजन सुनकर एकत्व-विभक्त्व की अनुभूति में रुचि देखकर वे भी आध्यात्मिक पद लिखते और आपको सुनाते थे।'' इस सम्बन्ध में २१ मार्च २०१८ दोपहर, डिण्डौरी प्रवास में मेरे गुरुवर आचार्यश्री जी ने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान देते हुए श्री दीपचंद जी छाबड़ा को बताया-
‘‘गुरु महाराज ने जब सल्लेखना व्रत धारण कर लिया था। तब आध्यात्मिक भजन लिखकर गुरु महाराज को सुनाता था।" इस प्रकार निर्यापकाचार्य अवस्था में मेरे गुरुवर ने जो आध्यात्मिक गीत लिखे थे, वे प्रकाशित होकर आप तक पहुँच चुके हैं किन्तु एक और गीत उनका कमल कुमार जैन, यू.डी.सी. जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज अजमेर की डायरी में मिला जो उन्होंने १९७५ में प्रतिलिपि की है वह आपको बता रहा हूँ-
प्रवृत्ति का फल संसार
कभी मिला सुर विलास,तो कभी नरक निवास।
पुण्य पाप का परिणाम, कभी न मिलता विश्राम ॥१॥
मूढ़ पाप से डरता, अतः पुण्य सदा करता।
तो संसार बढ़ाता, भव वन चक्कर खाता ॥२॥
पाप तज पुण्य करेंगे, तो क्या नहीं मरेंगे?।
भले ही स्वर्ग मिलेगा, भव दुख नहीं मिटेगा ॥३॥
प्रवृत्ति का फल संसार, निवृत्ति सुख का भण्डार।
पहली अहो पराश्रिता, दूजी पूज्य निजाश्रिता ॥४॥
मत बन किसी का दास, अनुगामी रोक पर बन परसे उदास।
जिससे कर्मों का नाश, उदित हो वो प्रकाश ॥५॥
अतः मेरा सौभाग्य, मुझको हुआ वैराग्य।
पुण्य पाप तो नश्वर, शुद्धात्म ही ईश्वर ॥६॥
सुख दुख में समान मुख, रहे तो, मिले शिव सुख।
अन्यथा तो दुस्सह दुःख, ऊर्ध्व, अधो, पार्श्व सम्मुख ॥७॥
स्नान स्वानुभव सर में, यदि हो, तो पल भर में।
तन, मन, निर्मल-तम बने, अमर बने मोद घरे ॥८॥
सब पर कर्म परम्परा, यों लख तू स्वयं जरा।
निज में धन खूब भरा, अविनश्वर औ खरा ॥९॥
आलोकित लोकालोक, करता वही आलोक।
जो मुझ में अव्यक्त रूप, व्यक्त हो, तो सुख अनूप ॥१०॥
क्यों करता व्यर्थ शोक, निज को जान मन रोक।
बाहर दिखती पर्याय, अभ्यंतर 'द्रव्य' सुहाय ॥११॥
‘विद्या' रथ पर बैठकर, मनोवेग निरोध कर।
अब शिवपुर है जाना, फिर लौट नहीं आना ॥१२॥
२. अब मैं मम मन्दिर में रहूँगा.
३. पर भाव त्याग तू बन शीघ्र दिगम्बर.
४. मोक्ष-ललना को जिया! कब वरेगा.
५. भटकन तब तक भव में जारी.
६. बनना चाहता यदि शिवांगना पति.
७. चेतन निज को जान जरा.
९. अहो! यही सिद्ध शिला.
इन गीतों को पढ़कर एक आत्मा की तड़फन सुनाई देती है। वह भव-भव के कारागार से छूटना चाहती है। इस तरह सन् १९७२ के पन्नों पर सच्चे मुमुक्षुओं का स्वर्णिम इतिहास रचा गया एवं जाते हुए वर्ष ने आगत वर्ष को चेताया! सावधान !! अप्रमत्त रहना . दुनियाँ का इतिहास लिखने में चूक हो जाए तो हो जाए किन्तु जो प्राणीमात्र के लिए जीते हैं, सबके हित में सोचते हैं, सर्व सुखी बनने का मार्ग बताते हैं, ऐसे तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी साधक महापुरुषों के पल-पल को, उनकी हर श्वांस के अनुभवों को लिखना न भूलना। वही तुम्हारी लेखनी को स्वर्णिम बनाएगी। वर्ष १९७३ कलम ले सावधान हो गया। ऐसे मुमुक्षुओं के चरणों में नमस्कार करता हुआ.
आपका शिष्यानुशिष्य
ज्ञानमूर्ति श्री ज्ञानसागर जी महाराज को विनम्र श्रद्धाञ्जलि
(तर्ज—आ जाओ तड़पते हैं अरमां-चित्र-'आवारा')
श्रद्धा से झुका सर चरणों में, मुनिराज को वंदन करते हैं।
इन दो नैनों के पैमाने, कर दर्श, हर्ष से छलकते हैं । टेर।।
तेज के पुंज, शान्ति शिरोमणि, करुणा के तो ये आगार हैं।
हैं परम तपोनिधि, जो जग में, आदर्श अनुपम रखते हैं। श्रद्धा से ।।१।।
जन्म लिया ग्राम राणोली, महिमा राजस्थान की बढ़ाई है।
प्रकटे कोख से देवी घृतवली की, चतुर्भुज जी के लाल मनभावते हैं ॥२॥
माता-पिता धरा नाम भूरामल, वैराग्य जगा शिशुकाल ही,
वर्ष अट्टारा ब्रह्मचर्यधारा, ज्ञान उपार्जन अनुरत रहते हैं। श्रद्धा से ॥३॥
पत्र क्रमांक - 181 क्षपक मुनिराज की दैनन्दिनी
अज्ञ अंधकार को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले परमपूज्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल ज्ञानदीप प्रकाशनार्थ नमस्कार नमस्कार नमस्कार. हे गुरुवर ! जैसे ही आपने आचार्यपद का त्याग किया और नियम सल्लेखना व्रत को धारण किया, तब नूतन आचार्य के निर्देशन में आपकी दैनन्दिनी के बारे में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने ०८-११२०१५ भीलवाड़ा में बताया-
क्षपक मुनिराज की दैनन्दिनी
‘‘नियम सल्लेखना व्रत को देने के बाद नूतन आचार्यश्री के निर्देशन में प्रातः ७:३०-९:00 बजे तक आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी विरचित परमपूज्य समयसार ग्रन्थराज का स्वाध्याय चलता था। गाथाओं को निर्यापकाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज लयबद्ध पढ़ते थे उसका अर्थ गुरुदेव क्षपकराज ज्ञानसागर जी महाराज करते थे। दोपहर में २-४ बजे तक परमपूज्य शिवकोटी आचार्य विरचित पूज्य भगवती आराधना ग्रन्थराज का स्वाध्याय चलता था। जिसकी मूलगाथा एवं संस्कृत टीका को आचार्य महाराज पढ़ते थे और उसका भावार्थ क्षपक मुनिराज समझाते थे एवं बीच-बीच में विशेषार्थ भी बताते थे इस स्वाध्याय में ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक आदिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक सम्भवसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी, क्षुल्लक स्वरूपानंदसागर जी और कुछ समय तक ब्रह्मचारिणी दाखाबाई जी, ब्रह्मचारिणी मणिबाई जी, ब्र. सोहनलाल जी छाबड़ा (टोडारायसिंह), ब्र. विकासचंद जी इत्यादि त्यागिगण एवं अनेकों श्रावक-श्राविकाओं के साथ पंण्डित श्री चंपालाल जी जैन विशारद भी नित्यप्रति ज्ञान लाभ लेते थे। शाम की सामयिक के पश्चात् रात्रि में श्रावक लोग वैयावृत्य करने के लिए आ जाते थे। तब श्रीमान् गम्भीरमल जी सेठी आध्यात्मिक भजन सुनाते थे। जिनमें दौलतराम जी, भूधरदास जी, द्यानतराय जी, बनारसीदास जी, भागचंद जी, जिनेश्वरदास जी, बुधचंद जी आदि पुराने कवियों के द्वारा रचित भजन हुआ करते थे। इसी प्रसंग में नसीराबाद के ताराचंद जी सेठी सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी ने भी भीलवाड़ा में बताया-
‘‘हम युवा लोग जिनमें श्री शान्तिलाल जी सोगानी, श्री प्रवीणचंद जी अनुगामी रोक गदिया, श्री रतनलाल जी पाटनी, श्री सीताराम जी गदिया आदि कई लोग उनकी वैयावृत्य करने रात्रि में प्रतिदिन जाते थे। दिन में तो मुनि विद्यासागर जी और संघ के साधु वैयावृत्य करते थे। वैयावृत्य के समय पर श्रीमान् गम्भीरमल जी सेठी पुराने गीत एवं लावनियाँ सुनाया करते थे। कभी-कभी राजकुमार गदिया भी लावनियाँ सुनाया करते थे। तब आचार्य महाराज विद्यासागर जी भी सुना करते थे। एक दिन हम युवाओं ने उनसे पूछा-महाराज! आपको ये लावनियाँ समझ में आ जाती हैं क्या? तो आचार्यश्री बोले- ‘बार-बार सुनने से भाव समझ में आ जाता है और शब्दकोश तैयार हो जाता है। इस प्रकार आपके प्रिय निर्यापकाचार्य आपकी सेवा में चौबीसों घण्टे लगे हुए थे और आपके आध्यात्मिक भजन सुनकर एकत्व-विभक्त्व की अनुभूति में रुचि देखकर वे भी आध्यात्मिक पद लिखते और आपको सुनाते थे।'' इस सम्बन्ध में २१ मार्च २०१८ दोपहर, डिण्डौरी प्रवास में मेरे गुरुवर आचार्यश्री जी ने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान देते हुए श्री दीपचंद जी छाबड़ा को बताया-
‘‘गुरु महाराज ने जब सल्लेखना व्रत धारण कर लिया था। तब आध्यात्मिक भजन लिखकर गुरु महाराज को सुनाता था।" इस प्रकार निर्यापकाचार्य अवस्था में मेरे गुरुवर ने जो आध्यात्मिक गीत लिखे थे, वे प्रकाशित होकर आप तक पहुँच चुके हैं किन्तु अनुगामी रोक एक और गीत उनका कमल कुमार जैन, यू.डी.सी. जे.एल.एन. मेडिकल कॉलेज अजमेर की डायरी में मिला जो उन्होंने १९७५ में प्रतिलिपि की है वह आपको बता रहा हूँ-
प्रवृत्ति का फल संसार
कभी मिला सुर विलास,तो कभी नरक निवास।
पुण्य पाप का परिणाम, कभी न मिलता विश्राम ॥१॥
मूढ़ पाप से डरता, अतः पुण्य सदा करता।
तो संसार बढ़ाता, भव वन चक्कर खाता ॥२॥
पाप तज पुण्य करेंगे, तो क्या नहीं मरेंगे?।
भले ही स्वर्ग मिलेगा, भव दुख नहीं मिटेगा ॥३॥
प्रवृत्ति का फल संसार, निवृत्ति सुख का भण्डार।
पहली अहो पराश्रिता, दूजी पूज्य निजाश्रिता ॥४॥
मत बन किसी का दास, पर बन परसे उदास।
जिससे कर्मों का नाश, उदित हो वो प्रकाश ॥५॥
अतः मेरा सौभाग्य, मुझको हुआ वैराग्य।
पुण्य पाप तो नश्वर, शुद्धात्म ही ईश्वर ॥६॥
सुख दुख में समान मुख, रहे तो, मिले शिव सुख।
अन्यथा तो दुस्सह दुःख, ऊर्ध्व, अधो, पार्श्व सम्मुख ॥७॥
स्नान स्वानुभव सर में, यदि हो, तो पल भर में।
तन, मन, निर्मल-तम बने, अमर बने मोद घरे ॥८॥
सब पर कर्म परम्परा, यों लख तू स्वयं जरा।
निज में धन खूब भरा, अविनश्वर औ खरा ॥९॥
आलोकित लोकालोक, करता वही आलोक।
जो मुझ में अव्यक्त रूप, व्यक्त हो, तो सुख अनूप ॥१०॥
क्यों करता व्यर्थ शोक, निज को जान मन रोक।
बाहर दिखती पर्याय, अभ्यंतर 'द्रव्य' सुहाय ॥११॥
‘विद्या' रथ पर बैठकर, मनोवेग निरोध कर।
अब शिवपुर है जाना, फिर लौट नहीं आना ॥१२॥
२. अब मैं मम मन्दिर में रहूँगा.
३. पर भाव त्याग तू बन शीघ्र दिगम्बर.
४. मोक्ष-ललना को जिया! कब वरेगा.
५. भटकन तब तक भव में जारी.
६. बनना चाहता यदि शिवांगना पति.
७. चेतन निज को जान जरा.
९. अहो! यही सिद्ध शिला.
इन गीतों को पढ़कर एक आत्मा की तड़फन सुनाई देती है। वह भव-भव के कारागार से छूटना चाहती है। इस तरह सन् १९७२ के पन्नों पर सच्चे मुमुक्षुओं का स्वर्णिम इतिहास रचा गया एवं जाते हुए वर्ष ने आगत वर्ष को चेताया! सावधान !! अप्रमत्त रहना . दुनियाँ का इतिहास लिखने में चूक हो जाए तो हो जाए किन्तु जो प्राणीमात्र के लिए जीते हैं, सबके हित में सोचते हैं, सर्व सुखी बनने का मार्ग बताते हैं, ऐसे तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी साधक महापुरुषों के पल-पल को, उनकी हर श्वांस के अनुभवों को लिखना न भूलना। वही तुम्हारी लेखनी को स्वर्णिम बनाएगी। वर्ष १९७३ कलम ले सावधान हो गया। ऐसे मुमुक्षुओं के चरणों में नमस्कार करता हुआ.
आपका शिष्यानुशिष्य
ज्ञानमूर्ति श्री ज्ञानसागर जी महाराज को विनम्र श्रद्धाञ्जलि
(तर्ज—आ जाओ तड़पते हैं अरमां-चित्र-'आवारा')
श्रद्धा से झुका सर चरणों में, मुनिराज को वंदन करते हैं।
इन दो नैनों के पैमाने, कर दर्श, हर्ष से छलकते हैं । टेर।।
तेज के पुंज, शान्ति शिरोमणि, करुणा के तो ये आगार हैं।
हैं परम तपोनिधि, जो जग में, आदर्श अनुपम रखते हैं। श्रद्धा से ।।१।।
जन्म लिया ग्राम राणोली, महिमा राजस्थान की बढ़ाई है।
प्रकटे कोख से देवी घृतवली की, चतुर्भुज जी के लाल मनभावते हैं ॥२॥
माता-पिता धरा नाम भूरामल, वैराग्य जगा शिशुकाल ही,
वर्ष अट्टारा ब्रह्मचर्यधारा, ज्ञान उपार्जन अनुरत रहते हैं। श्रद्धा से ॥३॥
अनुगामी रोक
जहाँ गाड़ियों का संचालन अनुगामी गाड़ी पद्धति के अनुसार किया जाता है वहाँ उन्हें एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के लिए एक के बाद एक लगातार उसी दिशा में उसी लाइन पर ऐसी रीति और समय के ऐसे अन्तर से भेजा जाएगा जैसा कि विशेष अनुदेशों द्वारा निर्धारित किया जाए।
- गाडियाँ अनुगामी गाड़ी पद्धति के अनुसार तब तक नहीं चलाई जाएगी जब तक कि अगले ब्लाॅक स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने गाडियाँ लेने की तैयारी के बाबत संदेश का आदान-प्रदान नहीं कर लिया है और इसके अतिरिक्त जब तक यह आश्वासन नहीं दे दिया है कि जिस स्टेशन से अनुगामी गाडियाँ भेजी जाएगी, उस ओर वह तब तक कोई गाड़ी नहीं भेजेगा जब तक कि वे सब अनुगामी गाडियाँ उसके स्टेशन पर पहुँच नहीं जाती और जब तक कि उसे विपरीत दिशा में गाडियाँ भेजने की अनुमति नहीं मिल जाती।
- जब किसी ब्लाॅक सेक्शन में अपरिहार्य कारणो से रनिंग समय बहुत अधिक लगता हो और सामान्य संचालन मे परेशानी आ रही हो तो वहां मुख्य परिचालन प्रबंधक की अनुमति से अनुगामी गाड़ी पद्धति लागू की जा सकती है। यह पद्धति घने कोहरे या तुफानी मौसम मे लागू नहीं की जायेगी।
- जब रेल के किसी भाग पर अनुगामी गाड़ी पद्धति आरंभ की जाती है तब उसकी रिपोर्ट रेल संरक्षा आयुक्त को भेजी जाएगी।
- अनुगामी गाड़ी पद्धति चालू करने पर निम्नलिखित शर्तो का पालन किया जाएगा, अर्थात् -
- कोई गाड़ी तब तक प्रस्थान नहीं करेगी जब तक लोको पायलट को इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रारूप में लिखित प्रस्थान प्राधिकार नहीं दे दिया जाता है और उससे उसकी लिखित पावती नहीं मिल जाती। यदि गाड़ी का उस स्टेशन पर रुकना निर्धारित नहीं है तो उसको इस प्रयोजन के लिए रोका जाएगा।
- प्रस्थान प्राधिकार मे , अगले रुकने वाले स्टेशन का नाम, निर्धारित गति और उससे पहले जाने वाली गाड़ी के छूटन के वास्तविक समय का उल्लेख किया जाएगा।
- आगे जाने वाली हर गाड़ी के लोको पायलट और गार्ड को इस बात की सूचना दी जाएगी कि उनके पीछे एक अनुगामी गाड़ी चलेगी तथा इस बात की भी सूचना दी जाएगी की वह अनुगामी गाड़ी लगभग कितने समय बाद प्रस्थान करेगी।
- किसी स्टेशन से कोई अनुगामी गाड़ी तब तक नहीं चलेगी जब तक कि उससे पहले वाली गाड़ी को प्रस्थान किये कम से कम 15 मिनट का समय निर्धारित ऐसा कम समय अंतराल बीत नहीं गया है।
- पहली गाड़ी के पीछे चलने वाली सभी गाड़ियाँ समान गति से चलाई जाएगी और यह गति 25 कि.मी.प्र.घं. से अधिक नहीं होगी।
- अगले ब्लाॅक स्टेशन को प्रत्येक गाड़ी के प्रस्थान का वास्तविक समय और पिछले ब्लाॅक स्टेशन को हर गाड़ी के पहुँचने का वास्तविक समय तत्काल सूचित किया जाएगा।
- किन्ही दो ब्लाॅक स्टेशनों के बीच एक ही समय मे चलने वाली अनुगामी गाडियों की संख्या स्टेशन दूरी के प्रत्येक 5 किलोमीटर के लिए एक गाड़ी से अधिक नहीं होगी तथा जब तक विशेष अनुदेशों द्वारा अनुमति नहीं मिल जाती तब तक, चाहे स्टेशनों के बीच की दूरी कितनी भी क्यों न हो, इन गाड़ियों की संख्या 4 से अधिक नहीं होगी।
- अनुगामी गाड़ी पद्धति लागू करने से पहले सुपरवाईजर द्वारा संबंधित नियमो एवं अपनाई जाने वाली सभी सावधानियाँ स्टेशन कर्मचारियों एवं रनिंग कर्मचारियों को समझाई जायेगी। अनुगामी गाड़ी पद्धति मे गाड़ियों के संचालन का सुपरविजन अधिकारी के द्वारा किया जायेगा।
- सवारी गाड़ी किसी अन्य गाड़ी को फोलो नहीं करेगी एवं कोई अन्य गाड़ी सवारी गाड़ी को फोलो नहीं करेगी। वह अपनी निर्धारित गति से चलेगी।
- लोको पायलट या गार्ड को प्रस्थान प्राधिकार देना
- गार्ड या लोको पायलट को प्रत्येक प्रस्थान प्राधिकार स्टेशन मास्टर अथवा विशेष अनुदेशों के अधीन इस काम के लिए नियुक्त किसी अन्य रेल सेवक द्वारा दिया जाएगा।
- जब प्रस्थान प्राधिकार लोको पायलट को दिया जाता है तो उसकी एक डुप्लीकेट प्रति गार्ड को भी दी जाएगी।
- यदि प्रस्थान प्राधिकार गार्ड को दिया जाता है तो गार्ड द्वारा स्वयं लोको पायलट को सौप दिया जाएगा अथवा उस पर गार्ड के हस्ताक्षर होने के बाद या तो स्टेशन मास्टर अथवा विशेष अनुदेशों द्वारा इस काम के लिए नियुक्त किसी अन्य रेल सेवक द्वारा लोको पायलट को सौप दिया जाएगा।
- उसकी गाड़ी प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं है,
- यदि उसकी गाड़ी किसी दूसरी गाड़ी को पास करने के लिए प्रतीक्षा कर रही है तो जब तक बाद वाली गाड़ी संपूर्ण अंदर नहीं आ जाती है और उसकी गाड़ी के लिए परिचालित लाइन पूरी तौर से साफ नहीं हो जाती है।
- प्रस्थान प्राधिकार को तैयार करने की जिम्मेदारी
- जब लोको पायलट को प्रस्थान प्राधिकार सौंपा जाता है तो स्टेशन मास्टर यह देखेगा कि वह इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रारूप मे सही-सही भरा गया है और उस पर स्याही से पूरे हस्ताक्षर किये गये है।
- यदि लोको पायलट को प्रस्थान प्राधिकार दिया जाता है तो वह सुनिश्चित करेगा कि उसे दिया गया प्रस्थान प्राधिकार निर्धारित प्रारूप में सही और पूरी तरह तैयार किया गया ह ै और वह तब तक अपनी गाड़ी लेकर आगे नहीं बढेगा जब तक कि उसमे कोई त्रुटि थी तो उसे सुधार नहीं दिया गया है।
- यदि गाड़ी के गार्ड को प्रस्थान प्राधिकार दिया जाता है तो लोको पायलट को सौंपने से पहले वह भी इसी तरह देख लेगा कि इसमे कोई त्रुटि/कमी तो नहीं है।
- जब तक यह संचालन पद्धति लागू है तब तक किसी आती हुई गाड़ी के मार्ग मे सबसे बाहरी फेसिंग पाॅइंट के बाहर लाइन को अवरूद्ध नहीं किया जाएगा।
यह निश्चय कर लेने पर की उसी दिशा मे और अनुगामी गाड़िया नहीं भेजी जाएगी, स्टेशन मास्टर उसकी सूचना संदेश द्वारा अगले ब्लाॅक स्टेशन को भेजेगा। उसके बाद उन दोनों स्टेशनो के बीच किसी भी दिशा मे कोई और गाड़ी तब तक नहीं भेजी जाएगी जब तक की अंतिम गाड़ी अगले ब्लाॅक स्टेशन पर पहुँच नहीं जाती और उन दोनों स्टेशनों के बीच की लाइन साफ नहीं हो जाती।
जब कोई गाड़ी स्टेशनों के बीच रुक जाये और वह पंच मिनट से अधिक रुकती है या रुकने की संभावना है तो गाड़ी का बचाव किसी भी गेज में गार्ड द्वारा पीछे की और गाड़ी से 250 मीटर की दूरी पर एक पटाखा और 500 मीटर की दूरी पर 2 पटाखे लगाकर किया जाएगा, जो एक दूसरे से 10 मीटर दूर होगे।
यदि स्टेशनों के बीच रुकी हुई गाड़ी, दुर्घटना, खराबी, अवरोध अथवा अन्य किसी असाधारण कारण से आगे नहीं जा सकती है तो लोको पायलट भी आगे की और गाड़ी की उसी रीति से रक्षा करेगा जैसा कि गार्ड के लिए निर्धारित है।
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है वह लेखका मे मुश्किल से मिलेगी; इसलिए वह लेखकों से केवल उतना ही काम लेता है जितना वह बिना किसी हानि के ले सकता है। अमेरिका और अन्य देशो मे भी साहित्य और सिनेमा मे साम- न्जस्य नहीं हो सका और न शायद ही हो सकता है । साहित्य जन-रुचि का पथ-प्रदर्शक होता है, उसका अनुगामी नहीं। सिनेमा जन-रुचि के पीछे चलता है, जनता जो कुछ माँगे वही देता है । साहित्य हमारी सुन्दर भावना को स्पर्श करके हमे आनन्द प्रदान करता है । सिनेमा हमारी कुत्सित भावनाशो को स्पर्श करके हमे मतवाला बनाता है और इसकी दवा प्रोड्यूसर के पास नहीं । जब तक एक चीज की मॉग है, वह बाजार मे आएगी । कोई उसे रोक नहीं सकता। अभी वह जमाना बहुत दूर है जब सिनेमा और साहित्य का एक रूप होगा। लोक-रुचि जब इतनी परिष्कृत हो जायगी कि वह नीचे ले पाने वाली चीजो से घृणा करेगी, तभी सिनेमा मे साहित्य की सुरुचि दिखाई पड़ सकती है।
हिन्दी के कई साहित्यकारों ने सिनेमा पर निशाने लगाये लेकिन शायद ही किसी ने मछली बेध पाई हो । फिर गले मे जयमाल कैसे पड़ता? आज भी पडित नारायण प्रसाद बेताब, मुन्शी गौरीशकर लाल अख्तर, श्री हरिकृष्ण प्रेमी, मि० जमना प्रसाद काश्यप, मि० चन्द्रिका प्रसाद श्रीवास्तव, डाक्टर धनीराम प्रेम, सेठ गोविन्द दास, पडित द्वारका प्रसाद जी मिश्र आदि सिनेमा की उपासना करने में लगे हुए है । देखा चाहिए सिनेमा इन्हे बदल देता है या ये सिनेमा की काया-पलट कर
श्री नरोत्तम प्रसाद जी की चिट्ठी
श्रद्धेय प्रेमचन्द जी,
'लेखक' में आपका लेख 'फिल्म और साहित्य' पढा । इस चीज को लेकर रगभूमि मे अच्छी खासी कन्ट्रोवर्सी चल चुकी है। रगभूमि के वे
मुझे पिछली रोक आदेश का उपयोग कब करना चाहिए? | इन्वेंटोपैडिया
सतावर की खेती,shatavari farming,8410607096 (नवंबर 2022)
ट्रेलिंग स्टॉप ऑर्डर का उपयोग स्टॉक नुकसान पर सीमाएं और शेयर की स्थिति पर मुनाफे की रक्षा के लिए किया जाता है। जब आप जानते हैं कि आपके पास अपने ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म तक पहुंच नहीं है, तो आपको अपने पदों पर चलने वाले स्टॉप ऑर्डर का इस्तेमाल करना चाहिए। जब आप अपनी स्थिति से भावनात्मक रूप से जुड़ा हो तो आपको पिछली रोक आदेश का उपयोग करना चाहिए।
एक ट्रेलिंग स्टॉप ऑर्डर स्टॉप ऑर्डर के समान है हालांकि, एक पिछला स्टॉप ऑर्डर स्टॉक की कीमत को ट्रैक करता है और स्टॉक की कीमत बढ़ जाती है या घट जाती है तो एक निर्दिष्ट प्रतिशत के अनुसार ऑर्डर बदल जाता है। स्टॉप ऑर्डर एक मार्केट ऑर्डर बन जाता है, क्योंकि स्टॉप प्राइस तक स्टॉक प्राइस पहुंच जाती है।
उदाहरण के लिए, मान लें कि आप फेसबुक इंक के लंबे 500 शेयर हैं, जो आपने जुलाई 2013 में 25 डॉलर प्रति शेयर के लिए खरीदा था। आपकी लंबी स्थिति अप्रैल 17, 2015 तक 323% बढ़ी और बंद $ 80 में 78. मान लीजिए कि फेसबुक 22 अप्रैल, 2015 को अपनी त्रैमासिक कमाई की रिपोर्ट करता है। मान लें कि आपको कमजोर आय की उम्मीद है, और आप इन मुनाफे की रक्षा करना चाहते हैं। हालांकि, आप स्टॉक बेचने के बारे में परेशान हैं क्योंकि आप इसे भावनात्मक रूप से संलग्न हैं।
आप अपने नुकसान को सीमित करने और अपने निवेश की सुरक्षा के लिए इस मामले में एक अनुगामी रोक आदेश का उपयोग कर सकते हैं। कमाई की तारीख से पहले 10% ट्रेल ऑर्डर रद्द करने तक आप एक अच्छा दर्ज करते हैं। इसलिए, अगर शेयर में 10% की गिरावट आती है, तो स्टॉप ऑर्डर शुरू हो जाता है, जिससे आपके मुनाफे की सुरक्षा होती है।
पिछला स्टॉप $ 72 पर सेट है 70 ($ 80- 78- (0. 10 * 80 80. 78)) हालांकि, जैसा कि शेयर की कीमत बढ़ती है, ट्रेलिंग स्टॉप प्राइस भी बढ़ जाती है। फेसबुक का स्टॉक मूल्य बढ़कर 85 डॉलर हो गया है, बाद में चलने वाला स्टॉप ऑर्डर तब बढ़कर $ 76 हो गया है। 50.
मान लीजिए कि फेसबुक 85 डॉलर प्रति दिन बंद कर देता है, यह अपनी कमाई को जारी करता है और कमजोर कमाई और मार्गदर्शन के कारण कारोबार के दौरान 11% बूँदें। इस परिदृश्य में, आपके अनुगामी रोक आदेश को ट्रिगर किया जाएगा। यह मानते हुए कि आप तत्काल भरे थे, आप $ 75 में अपने शेयरों को बेचेंगे। 65 ($ 85 - ($ 85 * 0। 11))
उपयोग करने का आदेश कौन सा है? रोक-हानि या रोक-सीमा आदेश | इन्वेस्टमोपेडिया
रोक-नुकसान और रोक-सीमा के आदेश मुनाफे या सीमा नुकसान में लॉक करने की मांग वाले निवेशकों के लिए विभिन्न प्रकार के संरक्षण प्रदान कर सकते हैं निवेशकों को यह जानने की जरूरत है कि प्रत्येक प्रकार के आदेश से पता चल जाता है कि दूसरे बनाम एक का उपयोग कब किया जाए।
क्या मुझे बोली के साथ एक स्थान खरीदने के लिए एक सीमा आदेश दर्ज करना चाहिए और पूछना चाहिए कि वे दूर हैं? | निवेशकिया
ऑर्डर के प्रकार के बारे में अधिक जानें और एक सुरक्षा खरीदने के लिए सीमा आदेश क्यों दर्ज किए जा सकते हैं, विस्तृत बोली-मांग फैलता के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है
मैं $ 30 में एक स्टॉक खरीदना चाहता हूं, जब यह $ 35 तक पहुंचता है, तो उसे लटका नहीं करना चाहिए, अगर यह 27 डॉलर से कम है, और मैं यह सब करना चाहता हूं एक व्यापारिक आदेश मुझे किस प्रकार के आदेश का उपयोग करना चाहिए?
एक बार जब आपने एक सुरक्षा की पहचान की है जिसे आप खरीदना चाहते हैं, तो आपको उस कीमत का निर्धारण करना होगा जिस पर आप बेचना चाहते हैं यदि मूल्य प्रतिकूल दिशा में सिर और जिस पर आप लाभ लेना चाहते हैं मूल्य आपके पक्ष में चलता है कई मामलों में, यह डेटा दलाल के तीन अलग-अलग आदेशों का उपयोग करके रिले किया जाता है।