गोल्ड और ईटीएफ

गोल्ड ईटीएफ बेहतर या सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड
हालिया दिनों कीमतों में आई नरमी के बाद निवेश के नजरिये से सोने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। लोग यह भी समझने लगे हैं कि फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर गोल्ड में निवेश करना ज्यादा बेहतर है। लेकिन ज्यादातर लोग इस बात को लेकर दुविधा में होते हैं कि पेपर गोल्ड में निवेश के दो पॉपुलर विकल्प यानी गोल्ड ईटीएफ और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में से किसमें निवेश किया जाए। आज अलग-अलग कसौटियों पर इन्हीं दो विकल्पों को परखते हैं ताकि निवेशकों को किसी एक विकल्प के चयन में आसानी हो सके।
निवेश की सीमा
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ दोनो में निवेशकों को प्रति यूनिट गोल्ड में निवेश का मौका मिलता है। लेकिन इसके लिए उन्हें फिजिकल फॉर्म में सोना रखने की जरूरत नहीं होती। गोल्ड ईटीएफ और बॉन्ड दोनों में एक यूनिट की कीमत 1 ग्राम सोने की कीमत के बराबर होती है। मतलब आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ दोनों में कम से कम 1 ग्राम गोल्ड के बराबर वैल्यू की एक यूनिट में निवेश कर सकते हैं। गोल्ड ईटीएफ में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। जबकि सॉवरिन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर यूनिट में निवेश कर सकता है। ध्यान रहे गोल्ड ईटीएफ और सॉवरिन बॉन्ड दोनों में सोना सिर्फ अंडरलाइंग एसेट है इसलिए रिडेम्प्शन के बाद फिजिकल गोल्ड नहीं बल्कि अंडरलाइंग ऐसेट यानी सोने की कीमत भारतीय रुपये में मिलेगी।
खरीद-बेच की सुविधा
गोल्ड ईटीएफ को आप स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय/ निश्चित अंतराल पर जारी करती है। इसे कभी भी बेचा नहीं जा सकता है। बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांचवें, छठे और सातवें वर्ष में बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान की तारीख पर किया जा सकता है। हां, डीमैट फॉर्म में इस बॉन्ड को लेने वाले इसे स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग आवर्स के दौरान कभी भी बेच सकते हैं।
डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट
गोल्ड ईटीएफ के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा। जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। सबसि्क्रप्शन के दौरान ही आपको सॉवरिन बॉन्ड फिजिकल फॉर्म (सर्टिफिकेट) के अतिरिक्त डीमैट फार्म में भी लेने का विकल्प मिलता है।
जोखिम
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई जारी करती है। इसलिए इसमें डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं है। जबकि प्राइवेट असेट मैनेजमेंट कंपनियां गोल्ड ईटीएफ मैनेज करती है। इसमें भी डिफॉल्ट का खतरा काफी कम होता है।
ब्याज
सॉवरिन बॉन्ड में इनिशियल इन्वेस्टमेंट / इश्यू प्राइस पर 2.5 फीसदी वार्षिक ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। अंतिम ब्याज मैच्योरिटी पर इनिशियल इन्वेस्टमेंट यानी प्रिंसिपल अमाउंट के साथ दिया जाता है। लेकिन ब्याज की कंपाउंडिंग नहीं होती है। ब्याज की रकम भी टैक्सेबल है। हालांकि ब्याज पर कोई टीडीएस नहीं कटता है। जबकि गोल्ड ईटीएफ पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता।
एक्सपेंस/खर्च
गोल्ड ईटीएफ मैनेज करने के एवज में फंड हाउस निवेशक से चार्ज वसूलते हैं। जिसे टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) कहते हैं। इसके अतिरिक्त जब भी आप यूनिट खरीदते या बेचते हो ब्रोकर को ब्रोकरेज चार्ज देना होता है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन बॉन्ड को एक्सचेंज पर खरीदोगे या बेचोगे तो आपको ब्रोकरेज चार्ज देना होगा।
लोन
जरूरत पड़ने पर गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। मतलब लोन के लिए गोल्ड बॉन्ड पेपर को कोलैटरल यानी जमानत/गारंटी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर यह सुविधा नहीं है।
टैक्स
अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के गोल्ड और ईटीएफ बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स डेट फंड की तरह लगता है। मतलब अगर खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले रिडीम करते हैं तो जिस वर्ष आप रिडीम करते हैं उस वर्ष रिटर्न/लाभ आपके एनुअल इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पडेगा। लेकिन अगर 36 महीने पूरे होने के बाद रिडीम करते हैं तो इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस और सरचार्ज मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पडेगा।
लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को भी अगर मैच्योरिटी से पहले यानी 8 साल से पहले रिडीम करते हैं तो गोल्ड ईटीएफ की तरह ही टैक्स देना होगा। कहने का मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर टैक्स बेनिफिट तभी है जब आप उसे मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड करते हो। फिजिकल गोल्ड पर भी गोल्ड ईटीएफ की तर्ज पर ही टैक्स लगता है।
लिक्विडिटी
गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा बेचा जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरिन बॉन्ड को कम से कम 5 साल के बाद ही रिडीम किया जा सकता है। लेकिन मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर टैक्स बेनिफिट से हाथ धोना पड़ेगा। दूसरी बात अगर आप स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी शार्ट यानी बेचना चाहेंगे तो आपको या तो पर्याप्त खरीदार नहीं मिलेंगे या मिलेंगे भी तो मार्केट प्राइस के नीचे यानी डिस्काउंट पर। यानी गोल्ड ईटीएफ की तुलना में सॉवरिन बॉन्ड में लिक्विडिटी निश्चित रूप से कम है।
निष्कर्ष / सलाह
अगर आप बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड कर सकते हैं तो आपके लिए सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड बेहतर है। लेकिन अगर आप कभी खरीदना बेचना चाहते हैं, यानी 8 साल तक होल्ड नहीं कर सकते हैं तो आपको गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना चाहिए।
नॉलेज: लोगों को रास आ रहा गोल्ड ईटीएफ में निवेश, इसमें आपको मिलेगा ज्यादा फायदा और सोना भी रहेगा सुरक्षित
पिछले कुछ महीने में गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) की चमक बढ़ी है। लगातार पांचवें महीने Gold ETF में निवेश बढ़ा है। अगस्त में कुल 908 करोड़ रुपए का निवेश आया है। इस साल अब तक कुल 5,356 करोड़ रुपए का निवेश आया है। कोरोनावायरस महामारी के कारण निवेशकों ने गोल्ड ईटीएफ में निवेश बढ़ा दिया है। अगर आप भी गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना चाहते हैं लेकिन आपको इसकी जानकारी नहीं है तो हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं।
भारत में 2007 से चल रहा गोल्ड ईटीएफ
गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) के जरिए निवेशक इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सोना खरीद/बेच सकते हैं और आर्बिटेज गेन (एक मार्केट से खरीदकर दूसरे मार्केट में बेचने पर लाभ) हासिल कर सकते हैं। भारत में गोल्ड ईटीएफ 2007 से चल रहे हैं और एनएसई और बीएसई में रेगुलेटेड इंस्ट्रूमेंट्स हैं। इन्हें कई म्यूचुअल फंड स्कीम्स के जरिए खरीद सकते हैं, जो बुलियन, माइनिंग या सोने के उत्पादन से जुड़े सहयोगी बिजनेसों में निवेश करती हैं। गोल्ड ईटीएफ में निवेश के कई फायदे हैं, जो इसे सोने के अन्य विकल्पों से बेहतर बनाते हैं।
1 ग्राम सोना से कर सकते हैं खरीदी की शुरुआत
ईटीएफ के जरिए सोना यूनिट्स में खरीदते हैं, जहां एक यूनिट एक ग्राम की होती है। इससे कम मात्रा में या एसआईपी (सिस्टमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान) के जरिए सोना खरीदना आसान हो जाता है। वहीं भौतिक (फिजिकल) सोना आमतौर पर तोला (10 ग्राम) के भाव बेचा जाता है। ज्वैलर से खरीदने पर कई बार कम मात्रा में सोना खरीदना संभव नहीं हो पाता।
गोल्ड ETF में मिलता है 99.5% शुद्ध सोना
गोल्ड ईटीएफ की कीमत पारदर्शी और एक समान होती है। यह लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन का अनुसरण करता है, जो कीमती धातुओं की ग्लोबल अथॉरिटी है। वहीं फिजिकल गोल्ड की अलग-अलग विक्रेता/ज्वैलर अलग-अलग कीमत पर दे सकते हैं। गोल्ड ईटीएफ से खरीदे गए सोने की 99.5% शुद्धता की गारंटी होती है, जो कि सबसे उच्च स्तर की शुद्धता है। आप जो सोना लेंगी उसकी कीमत इसी शुद्धता पर आधारित होगी।
इसमें लगती है मेकिंग चार्जेस की तुलना में कम ब्रोकरेज
गोल्ड ईटीएफ खरीदने में 0.5% या इससे कम का ब्रोकरेज लगता और पोर्टफोलियो मैनेज करने के लिए सालाना 1% चार्ज देना पड़ता है। यह उस 8 से 30 फीसदी मेकिंग चार्जेस की तुलना में कुछ भी नहीं है जो ज्वैलर और बैंक को देना पड़ता है, भले ही आप सिक्के या बार खरीदें। ईटीएफ सोना बेचने या खरीदने में ट्रेडर्स को सिर्फ ब्रोकरेज देना होता है। वहीं फिजिकल गोल्ड में लाभ का बड़ा हिस्सा मेकिंग चार्जेस में चला जाता है और यह सिर्फ ज्वैलर्स को ही बेचा जा सकता है, भले ही सोना बैंक से ही क्यों न लिया हो।
सोना रहता है सुरक्षित
इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड डीमैट अकाउंट में होता है जिसमें सिर्फ वार्षिक डीमैट चार्ज देना होता है। साथ ही चोरी होने का डर नहीं होता। वहीं फिजिकल गोल्ड में चोरी के खतरे के अलावा उसकी सुरक्षा में भी खर्च करना होता है।
इसे खरीदना है आसान
गोल्ड ईटीएफ खरीदने के लिए आपको अपने ब्रोकर के माध्यम से डीमैट अकाउंट खोलना होता है। इसमें एनएसई पर उपलब्ध गोल्ड ईटीएफ के यूनिट आप खरीद सकते है और उसके बराबर की राशि आपके डीमैट अकाउंट से जुड़े बैंक अकाउंट से कट जाएगी। आपके डीमैट अकाउंट में ऑर्डर लगाने के दो दिन बाद गोल्ड ईटीएफ आपके अकाउंट में डिपाजिट हो जाते हैं।
सोने के गहने से नहीं बल्कि Gold ETF से होती है अच्छी कमाई, निवेश करने से पहले यहां जान लें हर छोटी-बड़ी जानकारी
फिजिकल गोल्ड इसे इतर गोल्ड ईटीएफ भी सुरक्षि व बेहतर रिटर्न वाला निवेश विकल्प साबित हो सकता है. गोल्ड ईटीएफ में भी इक्विटी शेयरों की तरह ही निवेश कियसाा जाता है. अगर डीमैट अकाउंट नहीं है तो फंड ऑफ फंड्स भी निवेश का अच्छा विकल्प साबित हो सकता है.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: आशुतोष वर्मा
Updated on: Aug 06, 2021 | 8:04 AM
पिछले कुछ समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का दौर देखने को मिला है. इस अनश्चितता के बीच सोना ही निवेशकों की सबसे पहली पसंद बना हुआ है. दरअसल, किसी भी तरह की आर्थिक अनिश्चितता और बाजार की खराब चाल की स्थिति में सोना ही निवेश का सबसे सुरक्षित विकल्प माना जाता है. आमतौर पर जब इक्विटी बाजार में कमजोरी देखने को मिलती है, तब सोने में निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिलता है. यही कारण है कि वित्तीय प्लानर भी हर किसी को पोर्टफोलियों में सोना शामिल करने की सलाह देते हैं. इससे पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई करने में मदद मिलती है. अमूमन कहा जाता है कि अपने पोर्टफोलियो में 5 से 10 फीसदी निवेश सोना में जरूर करना चाहिए.
ऐसे में गोल्ड ईटीएफ इस तरह के लोगों के लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. गोल्ड ईटीएफ एक तरह से पैसिव रूप में मैनेज किए जाने वाले म्यूचुअल फंड स्कीम्स होते है, जो 99.5 फीसदी शुद्धता वाले स्टैंडर्ड बुलियन गोल्ड में निवेश करता है. ये म्यूचुअल फंड्स बेहद करीबी से सोने के भाव पर नज़र बनाए रहते हैं.
गोल्ड ईटीएफ भी इक्विटी शेयरों की तरह ही नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) पर ट्रेड किया जाता है. एक निवेशक के तौर पर आप भी बाजार के समय आसानी से डीमैट अकाउंट के जरिए खरीद या बेच सकते हैं. आज हम आपको ऐसे ही कुछ गोल्ड ईटीएफ के बारे में बता रहे हैं, जिसने बीते कुछ समय बेहतर रिटर्न दिया है.
गोल्ड ईटीएफ में निवेश से पहले इन बातों पर जरूरी ध्यान दें
अन्य निवेश गोल्ड और ईटीएफ विकल्पों की तरह ही गोल्ड ईटीएफ में भी पूंजी लगाने से पहले आपको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए. गोल्ड ईटीएफ में निवेश से पहले उसके एसेट साइज, ट्रैकिंग एरर, एक्सपेंस रेशियो, इम्पैक्ट कॉस्ट और स्पॉट प्राइस पर डिस्काउंट से लेकर उसके नेट एसेट वैल्यू आदि के बारे में पता करना चाहिए. किसी भी ईटीएफ को खरीदने या बेचने गोल्ड और ईटीएफ में उसकी लिक्विडिटी या ट्रेडिंग वॉल्युम पर खास ध्यान दिया जाता है. ऐसे में एक्सपर्ट की सलाह है कि निवेश के लिए वही विकल्प गोल्ड ईटीएफ चुनना चाहिए, जो हर दिन ट्रेड होता हो और उसकी वॉल्युम अच्छी हो.
(करोड़ रुपये में)
क्या है प्रीमियम और डिस्काउंट रेट का मतलब?
ट्रेडिंग के दौरान ईटीएफ का स्पॉट प्राइस प्रीमियम भाव या अपने इंडिकेटिव एनएवी (iNAV) से डिस्काउंट दर पर ट्रेड कर सकता है. ऐसा लिक्विडिटी नहीं होने या मार्केट मेकर्स द्वारा कम गतिविधि की वजह से होता है. एसेट मैनेजमेंट कंपनियां की ओर से अधिकृत रूप से नियुक्त किए गए प्रतिनिधियों को ही मार्केट मेकर्स कहा जाता है. जब किसी गोल्ड ईटीएफ का भाव iNAV से ज्यादा दर गोल्ड और ईटीएफ पर ट्रेड कर रहा होता है तो कहा जाता है कि यह ‘प्रीमियम’ भाव पर ट्रेड कर रहा है. वहीं, जब यह भाव iNAV से कम होता है तो कहा जाता है कि यह ईटीएफ डिस्काउंट पर ट्रेड कर रहा है.
डीमैट अकाउंट नहीं है तो गोल्ड फंड ऑफ फंड्स में करें निवेश
जिन निवेशकों के पास डीमैट अकाउंट नहीं है, वे गोल्ड फंड ऑफ फंड्स (Fofs) खरीद सकते हैं. गोल्ड फंड ऑफ फंड्स भी मुख्य रूप से गोल्ड ईटीएफ में ही निवेश करते हैं. गोल्ड फंड ऑफ फंड्स की अच्छी बात है कि इसमें सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लांन्स (SIP) के जरिए निवेश विकल्प मिलता है. जबकि, ईटीएफ में एसआईपी की सुविधा नहीं मिलती है. अब गोल्ड फंड में न्यूनतम गोल्ड और ईटीएफ हर महीने 500 रुपये की एसआईपी के जरिए निवेश करना शुरू कर सकते हैं.
गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड ऑफ फंड्स पर टैक्स का नियम
गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड ऑफ फंड्स पर टैक्स को लेकर एक समान ही नियम है. अगर गोल्ड फंड्स में 36 महीने या इससे ज्यादा समय के लिए निवेश किया जाता है तो इसपर आपको 20 फीसदी की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स देना होता है. अगर आप 36 महीने से पहले ही इन निवेश विकल्प से बाहर निकल जाते हैं तो शॉर्ट-टर्म कैपिल गेन्स देना होता है. यह टैक्स आपके टैक्स स्लैब रेट के हिसाब से तय होता है.
Wealth Guide: अक्षय तृतीया पर गोल्ड ETF में निवेश चमका देगा आपका पोर्टफोलियो, जानिए क्या है एक्सपर्ट की सलाह
Wealth Guide: मार्केट के मुश्किल समय में इन्वेस्टर्स एक सुरक्षित ऑप्शन की तलाश करते हैं. ऐसे में सोना एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है.
Wealth Guide: पिछले 2 सालों में कोरोना महामारी और जियोपॉलिटिकल टेंशन ने मार्केट में जिस तरह की उथल-पुथल मचाई है, इससे इन्वेस्टर्स को बहुत डर लगता है. हालांकि मार्केट में आने वाली किसी भी अनिश्चितता में जो एक बात हमेशा सुनाई देती है, वह यह कि 'इस बार समय पहले से अलग है'. आमतौर पर ऐसे समय में निवेशक एक सुरक्षित निवेश का विकल्प तलाशते हैं और ऐसे समय में सबसे ज्यादा सोना ही चमकता है.
अक्षय तृतीया इस साल 3 मई को पड़ रही है. हिंदूओं के इस पर्व पर भी सोना खरीदने का विशेष महत्व है. अक्षय तृतीया से पहले ICICI Prudential AMC के प्रोडक्ट डेवलपमेंट एंड स्ट्रैटेजी हेड चिंतन हरिया (Chintan Haria) ने बताया कि ऐसे मुश्किल समय में एसेट क्लास में सोना क्यों चमकता है.
चिंतन कहते हैं कि इसका कारण यह है कि सोना एक गैर-आय उपज वाली संपत्ति हो सकती है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी क्वालिटी इसका मूल्य है, जो सभी कल्चर, जियोग्राफी और करेंसी में सामन रूप से मूल्यवान है. मुश्किल समय में सुरक्षा की तलाश करने की प्रवृत्ति इसे और मूल्यवान बनाती है. मार्केट के बुरे समय में मुद्रास्फीति भी साथ में आती है, जो पेपर करेंसी के दाम को नीचे ले आती है. लेकिन चूंकि सोने की सप्लाई सीमित है, इसलिए पेपर करेंसी के विपरीत इसका अवमूल्यन नहीं किया जा सकता है. इससे यह इन्वेस्टर्स के बीच एक खास एसेट क्लास बन जाता है. हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी ऐसा देखने को मिला.
गोल्ड ईटीएफ
हरिया ने कहा कि व्यक्तिगत निवेश (Individual Investment) के दृष्टिकोण से, हर समय अपने पोर्टफोलियो में सोने के लिए एक मामूली आवंटन (5-10%) बनाए रखना समझदारी है. यह किसी व्यक्ति के पोर्टफोलियो में बहुत जरूरी विविधीकरण भी लाएगा. ऐसे कुछ तरीके हैं जिनके माध्यम से कोई व्यक्ति सोने में निवेश कर सकता है, जैसे फिजिकल गोल्ड खरीदना, गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) में निवेश करना, गोल्ड फंड/फंड ऑफ फंड्स, या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) खरीदना.
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उन्होंने समझाया, "इन सभी विकल्पों में से, जो एक पोर्टफोलियो के नजरिए से सबसे अधिक कुशल है, वह है गोल्ड ईटीएफ. Gold ETF एक ऐसा फंड है जिसका एक्सचेंज पर कारोबार होता है और यह घरेलू सोने की कीमतों को इसके आधार के रूप में ट्रैक करता है. इसलिए जब कोई निवेशक गोल्ड ईटीएफ खरीद रहा है, तो वह अनिवार्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक रूप में सोने में निवेश कर रहा है."
गोल्ड ईटीएफ में निवेश के फायदे
फिजिकल गोल्ड में निवेश की तुलना में Gold ETF में निवेश करने के कई फायदे हैं. सबसे पहले इसके लिए इन्वेस्टर्स को सिक्योरिटी और स्टोरेज के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि Gold ETF के यूनिट डीमैट के रूप में होती हैं. इसके बाद इसे खरीदने की लागत कम होती है, क्योंकि इसमें मेकिंग चार्ज आदि कॉस्ट नहीं जुड़ते हैं. इन्वेस्टर के पास ट्रेडिंग घंटों के दौरान किसी भी समय एक्सचेंजों पर सोने की यूनिट खरीदने या बेचने की सुविधा होती है और इसके लिए किसी बड़ी रकम को जुटाने की आवश्यकता नहीं होती है.
गोल्ड ईटीएफ में निवेश करते समय, इन्वेस्टर सिर्फ एक यूनिट खरीदकर अपना निवेश शुरू कर सकते हैं, जिसकी लागत 100 रुपये से कम है. उन निवेशकों के लिए जिनके पास गोल्ड और ईटीएफ डीमैट खाता नहीं है, वे गोल्ड फंड का विकल्प चुन सकते हैं जो किसी अन्य म्यूचुअल फंड की तरह ही है. इन सभी कारणों से, पिछले कुछ वर्षों में गोल्ड ईटीएफ में निवेशकों की दिलचस्पी लगातार बढ़ी है.
इसलिए यदि आप एक निवेशक हैं जो पोर्टफोलियो विविधीकरण की तलाश कर रहे हैं या भविष्य की आवश्यकताओं जैसे कि शादियों के लिए सोना जमा करना चाहते हैं, तो गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) में निवेश सोने में निवेश करने के लिए सबसे इष्टतम तरीका के रूप में उभरने की संभावना है.
(Disclaimer: The views/suggestions/advice expressed here in this article are solely by investment experts. Zee Business suggests its readers to consult with their investment advisers before making any financial decision.)