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मुद्रा बाजार

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मुद्रा बाजार प्रमाणपत्र (Mudra bajar pramanapatr ) मीनिंग : Meaning of मुद्रा बाजार प्रमाणपत्र in English - Definition and Translation

  1. ShabdKhoj
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मुद्रा बाजार प्रमाणपत्र MEANING IN ENGLISH - EXACT MATCHES

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मुद्रा बाजार ( Money Market ) किसे कहा मुद्रा बाजार जाता है ?

मुद्रा बाजार अल्पकालीन मौद्रिक सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय का केन्द्र माना जाता है । ये मौद्रिक सम्पत्तियाँ एक वर्ष या इससे कम समय में परिपक्व होती हैं । मुद्रा बाजार एक गतिशील बाजार है जिसमें अल्पकालीन प्रतिभूतियों का लेन-देन किया जाता है । अपनी अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं के लिए व्यक्ति, फर्म, कम्पनी, निगम, सरकार, संस्थाएँ, कृषक सभी मुद्रा बाजार पर निर्भर होते हैं । मुद्रा बाजार की परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं -

[ 1 ] प्रो. क्राउचर ( Crowther ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार एक सामुहिक नाम है जिसे विभिन्न फर्मों एवं संस्थाओं के लिए जो कि विभिन्न श्रेणियों की मुद्रा में व्यवहार करती हैं, प्रयोग किया जाता है ।"

[ 2 ] शेयर्स ( Sayers ) के अनुसार, "मुद्रा मुद्रा बाजार बाजार वह बाजार है जिसमें अल्पकालीन एवं प्रतिदिन के ऋणों का लेन-देन होता हैं ।

[ 3 ] सिपमैन ( Shipman ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार वह केन्द्र है जहाँ अल्पकालीन पूँजी की माँग एवं पूर्ति के परस्पर समायोजन होता है ।"

[ 4 ] रिजर्व बैंक ( Reserve Bank ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार अल्पकालीन मौद्रिक सम्पत्ति के क्रय-विक्रय का केन्द्र होता है । यह उधार लेने वालों की अल्पकालीन आवश्यकताओं को पूरा करता है तथा ऋणदाताओं को तरलता प्रदान करता है । यह वह स्थान होता है जहाँ पर वित्तीय एवं अन्य संस्थाओं और व्यक्तियों की अल्पकालीन विनियोग योग्य अतिरिक्त पूँजी को उधार चाहने वाली संस्थाओं, व्यक्तियों तथा सरकार द्वारा प्राप्त किया जाता है ।"

[ 5 मुद्रा बाजार ] प्रो. मेडन एवं नेऊलर ( Madden and Naoller ) के अनुसार, "मुद्रा बाजार वह यन्त्र है जिसके द्वारा अल्पकालीन ऋण लिये जाते हैं और जिसके द्वारा किसी राष्ट्र अथवा विश्व के वित्तीय व्यवहारों का निपटारा किया जाता है ।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से मुद्रा बाजार के विषय में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हैं -

( 1 ) मुद्रा बाजार में अल्पकालीन लेन-देन होता हैं ।

( 2 ) अल्पकालीन लेन-देन 1 दिन से लेकर 1 वर्ष तक अवधि के होते हैं ।

( 3 ) मुद्रा बाजार में अल्पकालीन मौद्रिक परिसम्पत्तियाँ होती हैं । इसके अन्तगर्त व्यापारिक पत्र (CP), ट्रेजरी बिल, जमा प्रमाणपत्र, याचना या माँग मुद्रा ( Call Money ), सरकारी बिल, बैंक की स्वीकृतियाँ, अन्तर-बैंक ऋण, समपार्श्विक ऋण, पारस्परिक कोष, विनिमय बिल आदि को सम्मिलित किया जाता है । इन्हीं परिसम्पत्तियों का लेन-देन होता है ।

( 4 ) अल्पकालीन वित्त की माँग-पूर्ति में सन्तुलन स्थापित होता है ।

संक्षेप में, मुद्रा बाजार के विषय में यह कहा जाता है कि "मुद्रा बाजार वित्तीय परिसम्पत्तियों का थोक बाजार है जहाँ इनका लेन-देन अल्पकाल के लिए किया जाता है ।" इस लेन-देन में भागीदारी की संख्या सीमित रहती है ।

भारतीय मुद्रा बाजार की संरचना ( Composition of Indian Money Market ) :-

भारतीय मुद्रा बाजार संगठित एवं असंगठित दो भागों में विभाजित है । संगठित भाग के अन्तगर्त अनेक संस्थाएँ मुद्रा के लेन-देन में लगी हुई हैं । इन संस्थाओं के कार्यों, नीतियों, निर्णयों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं में परिपक्वता है जिसके कारण मुद्रा बाजार में सन्तुलन बना रहता है । संगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाली संस्थाओं में रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, निजी बैंक, विकास बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ जिनमें सामान्य बीमा निगम, यू.टी.आई., वित्तीय निगम, प्रोविडेन्ट फण्ड आदि प्रमुख हैं । सहकारी बैंक का योगदान भी मुख्य हैं ।

भारतीय मुद्रा बाजार के असंगठित भाग के अन्तगर्त देशी बैंकर, महाजन या साहूकार आदि को सम्मिलित किया जाता है ।

भारतीय मुद्रा बाजार के दोष ( Defect of Indian Money Market ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का विकास पर्याप्त नहीं हुआ है । इसके कई दोष हैं । आगे इन दोषों को बताया जा रहा है -

[ 1 ] गैर-संगठित क्षेत्र का महत्त्व ( Importance of Non-Organized Sector ) :- भारतीय मुद्रा बाजार संगठित एवं गैर-संगठित क्षेत्रों में विभाजित है, किन्तु गैर-संगठित क्षेत्र का महत्त्व अधिक है । इसमें साहूकार, महाजन, देशी बैंकर, व्यापारी, निजी वित्तीय कम्पनियाँ हैं जिन पर रिजर्व बैंक का कोई नियन्त्रण नहीं होता । इनके नियम व शर्तें नहीं हैं । इससे साख नियन्त्रण करने में कठिनाई होती है । मुद्रा बाजार में मौद्रिक नीतियों को लागू करना कठिन होता है ।

[ 2 ] बैंकिंग सुविधाओं का अभाव ( Lack of Banking Facilities ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का बड़ा दोष यह है कि भारत में बैंकिंग सुविधाएँ पर्याप्त नहीं हैं । केवल शहरी क्षेत्रों में ये सुविधाएँ उपलब्ध हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं के बराबर हैं । ग्रामीण बचतों को एकमात्र करना, उनका विनियोजन करना सम्भव नहीं है । इससे मुद्रा बाजार भी विकसित नहीं हो पाया है ।

[ 3 ] ब्याज दरों में अन्तर ( Difference in Interest Rate ) :- भारत में मुद्रा बाजार की सुदृढ़ता न होने से ब्याज दरों में अन्तर पाया जाता है । अलग-अलग क्षेत्रों में ब्याज की दरें अलग-अलग होती हैं । रिजर्व बैंक द्वारा घोषित ब्याज दरें केवल व्यापारिक बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं तक ही सीमित हैं ।

[ 4 ] समन्वय की कमी ( Lack of Co-ordination ) :- भारतीय मुद्रा बाजार का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसके विभिन्न अंगों के बीच समन्वय की कमी है । विभिन्न व्यापारिक बैंक, वित्तीय संस्थाएँ एवं देशी बैंकर, साहूकार, महाजन आदि के बीच समन्वय है, कार्य की एकरूपता नहीं है, रिजर्व बैंक की नीतियों का पालन नहीं किया जाता, आपस में प्रतियोगिता चलती है । ब्याज दरों में भिन्नता पायी जाती है, रिज़र्व बैंक की घोषित ब्याज दरें निजी क्षेत्र की ब्याज दरों से भिन्न होती हैं । रिजर्व बैंक की ब्याज दरें व्यापारिक बैंकों पर लागू होती हैं ।

[ 5 ] मुद्रा बाजार में पूँजी की कमी ( Lack of Capital in Money Market ) :- मुद्रा बाजार में पूँजी की मुद्रा बाजार कमी हमेशा बनी रहती है । इसका प्रमुख कारण बचत में कमी, इससे विनियोग में कमी, इससे पूँजी में कमी-वह चक्र हमेशा चलता रहता है । भारत में बचतें बैंकों में जमा न करा के अनुत्पादक कार्यों में व्यय की जाती हैं । इन बचतों से सोना, चाँदी, भूमि, भवन आदि क्रय किया जाता है । पूँजी की कमी के कारण मुद्रा बाजार में वित्तीय आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पातीं और इसमें व्यापार एवं उद्योगों का विकास नहीं हो पाता ।

[ 6 ] साख संस्थाओं की कमी ( Lack of Credit Institutions ) :- भारतीय मुद्रा बाजार में साख प्रदान करने वाली संस्थाएँ बहुत कम हैं । कुछ प्रमुख संस्थाओं में यू.टी.आई., जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा निगम, व्यापारिक बैंक, वित्तीय संस्थाएँ आदि हैं । ये संस्थाएँ केवल शहरी एवं महानगरीय शहरों तक सीमित हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में साख-सुविधाएँ प्राप्त नहीं होतीं साख संस्थाओं में कमी के कारण मुद्रा बाजार विकसित नहीं हो पाता है ।

[ 7 ] संगठित बिल बाजार का अभाव ( Lack of Organized Bills Market ) :- भारतीय मुद्रा बाजार में संगठित बिल बाजार का स्थान सीमित है । भारत में बिलों द्वारा व्यापार करने की परम्परा मुद्रा बाजार नहीं है जबकि अन्य देशों में यह पूर्ण से विकसित हो चुका है । रिजर्व बैंक न इस दिशा में कुछ प्रयास किये हैं किन्तु वे पर्याप्त नहीं है । व्यापारिक बिलों के माध्यम से 90 दिनों की वित्त व्यवस्था की जाती है । इस अल्पकालीन वित्त व्यवस्था में भाग लेने वाली सभी प्रमुख संस्थाएँ व व्यापारिक बैंक आदि होते हैं । किन्तु बिल बाजार अविकसित अवस्था में है । इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं - (1) व्यापारिक बिलों की गारण्टी न होना, (2) बिलों के आकार-प्रकार में अन्तर, (3) बिल बाजार के प्रति उपेक्षा, (4) बैंकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक विनियोग, (5) भारी स्टाम्प ड्यूटी लगाना, (6) बिलों द्वारा व्यापार का प्रचार-प्रसार न होना, (7) वित्त एवं बट्टा गृह, स्वीकृति गृह एवं ऐसी ही अन्य संस्थाओं का विकास न होना, (8) बिलों पर कटौती, पुनर्कटौती सुविधा का लाभ न उठाना ।

भारतीय बिल बाजार के साथ-साथ ट्रेजरी बिल बाजार, जमा प्रमाणपत्र, व्यापारिक पत्र, माँग मुद्रा बाजार, पुनर्खरीद नीलामी आदि के पिछड़ेपन के कारण भी मुद्रा बाजार विकसित नहीं हो पाया है । समाशोधन गृह की सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं ।

[ 8 ] मौसमी आवश्यकताएँ ( Seasonal Requirements ) :- मुद्रा बाजार कृषि क्षेत्रों, व्यापारिक क्षेत्रों एवं औद्योगिक क्षेत्रों की मुद्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है । अक्टूबर से अप्रैल तक का समय कृषि क्षेत्रों के लिए, व्यस्त काल माना जाता है क्योंकि फसलें, मण्डियों में पहुँचती हैं । उसके लिए मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है । इसी प्रकार विभिन्न त्योहारों के कारण, विभिन्न करों के भुगतान के लिए, नकद भुगतान के लिए, वित्त की आवश्यकता पड़ती है । भारतीय मुद्रा बाजार अपने विभिन्न उपकरणों से भी वित्त की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है । माँग मुद्रा बाजार में ब्याज दरें बढ़ जाती हैं और मुद्रा की माँग-पूर्ति के बीच असन्तुलन पैदा हो जाता है । इस तरह मुद्रा बाजार पर मौसमी उच्चावचन का प्रभाव पड़ता है ।

मुद्रा बाजार व कमोटिडी बाजार – Money Market & Commodity Market के बारे में विवरण जानें!

मुद्रा बाजार (मनी मार्केट) और कमोडिटी मार्केट (Commodity market) पर आधारित प्रश्न कई प्रर्तिस्पर्धी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। यह दोनों ही टॉपिक काफी आसानी से समझे जा सकते हैं। इस लेख के माध्यम से हम मनी मार्केट और कमोडिटी मार्केट के बारे में हर मुख्य बाते बता रहे हैं जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसलिए मुद्रा बाजार (मनी मार्केट) और कमोडिटी मार्केट के बारे में, इसकी महत्वता, उपयोगिता व दोनों के बीच के अंतर को समझने के लिए यह लेख अंत तक ध्यान से पढ़ें व पीडीएफ में भी डाउनलोड करें। यहाँ भारतीय रुपए विनिमय दर के बारे में जानें।

मुद्रा बाजार एक वित्तीय बाजार का हिस्सा है जहां अल्पकालिक उधार जारी किए जा सकते हैं। इस तरह के बाजार में ऐसी संपत्तियां शामिल हैं जो अल्पकालिक उधार, उधार, खरीद और बिक्री के साथ सौदा करती हैं। हालांकि, कमोडिटी बाजार कच्चे या प्राथमिक उत्पादों को खरीदने, बेचने और व्यापार करने के लिए एक भौतिक या आभासी बाजार है। यहाँ प्रमुख देश और मुद्रा की सूची पढ़ें।

Table of Contents

मुद्रा बाजार का परिचय

  • मनी मार्केट वित्तीय प्रणाली का एक प्रमुख घटक है क्योंकि यह आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किए गए मौद्रिक संचालन का आधार है।
  • यह प्राथमिक तंत्र है जिसमें से सेंट्रल बैंक (आरबीआई) मुद्रा बाजार मुद्रा बाजार तरलता दर और अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों के सामान्य स्तर को प्रभावित करता है।
  • यह बाजार अल्पकालिक निधियों के लिए है, उनकी परिपक्वता 1 दिन से 1 वर्ष तक है और इसमें वित्तीय साधन शामिल हैं जिन्हें पैसे के करीबी विकल्प माना जाता है।
  • मनी मार्केट के इंस्ट्रूमेंट्स में तरलता (पैसे में त्वरित रूपांतरण), न्यूनतम लेनदेन लागत और मूल्य में कोई हानि नहीं है।

मुद्रा बाजार के कार्य

  • यह कम जोखिम, अत्यधिक तरल, अल्पकालिक उपकरणों के लिए थोक ऋण बाजार के रूप में कार्य करता है।
  • यह अल्पकालिक तरलता, अधिशेष और घाटे को दूर करने के लिए एक तंत्र प्रदान करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इस प्रक्रिया में मौद्रिक नीति के कामकाज की सुविधा प्रदान करता है।

मुद्रा बाजार (मनी मार्केट) में मुख्य प्रतिभागी

  • ज्यादातर, सरकार, बैंक और वित्तीय संस्थान मनी मार्केट पर हावी होते हैं।
  • सरकार मनी मार्केट में सबसे ज्यादा सक्रिय है और ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में यह इस बाजार में सबसे बड़ा उधारकर्ता है। सरकारी प्रतिभूतियां और ट्रेजरी बिल भारतीय सरकार की तरफ से आरबीआई द्वारा राजकोषीय घाटे को वित्त पोषित करने के लिए अपने उधार को पूरा करने के लिए जारी प्रतिभूतियां हैं।
  • सरकार के बैंकर के रूप में काम करने के अलावा, सेंट्रल बैंक (आरबीआई) मनी मार्केट ऑपरेशंस को नियंत्रित करने के लिए मनी मार्केट को नियंत्रित करता है और दिशानिर्देश जारी करता है।
  • मनी मार्केट में एक अन्य प्रमुख खिलाड़ी बैंकिंग क्षेत्र है। बैंक अर्थव्यवस्था के निवेशकों को उधार देने में बचतकर्ताओं की जमा राशि जमा करते हैं। इस प्रक्रिया को क्रेडिट निर्माण कहा जाता है। हालांकि, बैंकों को निवेश के लिए क्रेडिट बढ़ाने के लिए पूरी राशि का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। उन्हें वैधानिक तरल अनुपात (एसएलआर) और नकद रिजर्व अनुपात (सीआरआर) के रूप में जाना जाने वाला न्यूनतम तरल और नकद आरक्षित अनुपात बनाए रखना आवश्यक है।
  • वित्तीय संस्थानों, कॉरपोरेट, म्यूचुअल फंड, विदेशी संस्थागत निवेशक इत्यादि जैसे अन्य खिलाड़ी भी मनी मार्केट में खिलाड़ी हैं और मनी मार्केट में अपने संबंधित वित्तीय घाटे और कम कॉमिंग को पूरा करने के लिए लेनदेन करते हैं।

कमोडिटी मार्केट का परिचय

  • कमोडिटी, इकनोमिक गुड , ट्रेडबल गुड , प्रोडक्ट और आर्टिकल है। कमोडिटी विनाशकारी या अविनाशकारी हो सकती है। एक वस्तु की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता में से एक यह है कि उसकी कीमत पूरी तरह से बाजार के हालातों द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • कमोडिटी को एक आर्टिकल या एक उत्पाद या सामग्री के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जिसे इच्छुक खरीदारों और विक्रेताओं के बीच एक स्थापित बाजार में खरीदा और बेचा जाता है।
  • कमोडिटी बाजार के ऐसा स्थान है जहां हर तरह की वस्तु को खरीद और बेच के लिए आना पड़ता है। जहां सभी व्यापारी साथ मिलकर वस्तु की कीमत निर्धारित करते हैं।
  • एक वस्तु बाजार स्थापित करने के लिए, उत्पाद में भिन्नताओं पर सर्वसम्मति जो इसे किसी उद्देश्य या किसी अन्य के लिए स्वीकार्य बनाती है, वह बहुत व्यापक होनी चाहिए।
  • कमोडिटी बाजार में मुख्‍य रूप से रॉ मटेरियल्‍स (कच्‍चा माल) का आदान-प्रदान होता है। कमोडिटी की अवधारणा को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम ये उदाहरण ले स‍‍कते है कि अगर कोई कुर्सी जो किसी के बैठने के लिए बनाई गई हो या वो कोई भी वस्‍तु जो किसी के काम आती हो उसकी ट्रेडिंग ही कमोडिटी क‍हलाती है। वो कोई भी वस्‍तु कमोडिटी मार्केट में नहीं आती, जिसका उत्‍पादन किसी रुचि या शौक को पूरा करने के लिए किया गया हो।

कमोडिटी मार्केट के कार्य

  • बाजार मूल्य खोज तंत्र के रूप में कार्य करता है, वस्तुओं की कीमत आपूर्ति और मांग के आधार पर निर्धारित किया जा रहा है। मुद्रा बाजार नीलामी तंत्र के माध्यम से कीमतों की खोज की जाती है जैसे कि विक्रेता एक निश्चित कीमत मांगते हैं, और खरीदारों उन्हें कीमत की पेशकश करते हैं, एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य मूल्य पर सेट करने के लिए आते हैं।

कमोडिटी मार्केट के मुख्य प्रतिभागी

  • कमोडिटी बाजार में दो मुख्य प्रतिभागी हैं- खरीदार और विक्रेता। वे बाजार में एक-दूसरे से मिलते हैं, विक्रेता आपूर्ति पक्ष और खरीदा ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करता।
  • कमोडिटी बाजारों में वस्तुओं के व्यापार में प्रत्यक्ष भौतिक व्यापार (स्पॉट ट्रेडिंग) और डेरिवेटिव व्यापार शामिल हैं।
  • एक बाजार जिसमें सामान नकदी के लिए बेचे जाते हैं और तुरंत वितरित किया जाता है उसे भौतिक बाजार कहा जाता है। इन बाजारों में सौदे तुरंत प्रभावी होते हैं। भौतिक बाजार को नकद बाजार या स्पॉट मार्केट के रूप में भी जाना जाता है,
  • स्पॉट की कीमतें, व्यापार के कारोबार के आधार पर विभिन्न तरीकों से भावी कीमतों की गति की बाजार अपेक्षाओं को इंगित कर सकती हैं।
  • एक गैर-नाश करने योग्य वस्तु, स्पॉट मूल्य भविष्य की कीमतों की गतिविधियों की बाजार अपेक्षाओं को दर्शाता है। सिद्धांत रूप में, स्पॉट और आगे की कीमतों में अंतर वित्त शुल्क के बराबर होना चाहिए, साथ ही वाहक की लागत के अनुसार, वस्तु के धारक के कारण कोई कमाई होना चाहिए।
  • एक विनाशकारी वस्तु ऐसी आर्बिट्रेज की अनुमति नहीं देती है – भंडारण की लागत कमोडिटी की अपेक्षित भविष्य की कीमत से प्रभावी रूप से अधिक है। नतीजतन, स्पॉट कीमतें भविष्य की कीमतों की गति के बजाय वर्तमान आपूर्ति और मांग को दर्शाती हैं। स्पॉट कीमतें, इसलिए, काफी अस्थिर हैं और आगे की कीमतों को स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करती है।

हम आशा करते हैं की आपको मनी मार्केट और कमोडिटी मार्केट (Money Market and Commodity Market Details in Hindi) पर दी गई जानकारी मददगार साबित हुई होगी यदि आप इस तरह के अन्य लेखों को भी पढ़ना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए लेखों का सन्दर्भ लें। आप हमारी टेस्टबुक ऐप भी डाउनलोड कर सकते हैं जो मुफ़्त है और किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू कर सकते है।

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मुद्रा बाजार

आदि डेरिवेटिव, मुद्रा बाजार के उपकरणों में लेनदेन को विनियमित करने की शक्ति.

45W. (1) बैंक, सार्वजनिक हित में, या अपने लाभ के लिए देश की वित्तीय प्रणाली को विनियमित ब्याज दरों या ब्याज दर उत्पादों से संबंधित नीति निर्धारण और में काम, सभी एजेंसियों या उनमें से किसी को इस निमित्त निर्देश दे सकता है प्रतिभूतियों, मुद्रा बाजार के उपकरणों, विदेशी मुद्रा, डेरिवेटिव, या बैंक के रूप में की तरह प्रकृति के अन्य उपकरणों से समय समय पर निर्दिष्ट कर सकते हैं:

इस उपधारा के तहत जारी निर्देशों प्रतिभूति संविदा (विनियमन) की धारा 4 के तहत मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों अधिनियम, 1956 (पर, उसमें उल्लेख किया लेनदेन के संबंध में ट्रेडों के निष्पादन या निपटान के लिए प्रक्रिया से संबंधित नहीं होगा बशर्ते कि 1956 का 42).

(2) बैंक, एजेंसियों उपधारा में निर्दिष्ट को विनियमित करने के लिए इसे सक्षम बनाने के उद्देश्य के लिए (1), उनमें से कोई भी जानकारी, बयान या मुद्रा बाजार अन्य विवरण के लिए कहते हैं, या किए जाने के लिए ऐसी एजेंसियों के निरीक्षण के कारण हो सकता है.

भारत में मुद्रा और वित्त बाजार के साधन

मुद्रा बाजार एक ऐसा सेंटर है जहाँ अल्प कालीन स्वभाव की मौद्रिक संपत्तियों या प्रतिभूतियों (सामान्यतः एक वर्ष से कम अवधि की) का व्यापार होता है, जबकि वित्त बाजार, मध्यम और दीर्घकालीन फण्ड का बाजार है जहाँ लम्बी अवधि के लिए बचत बिकती है।

मुद्रा बाजार एक ऐसा सेंटर है जहाँ अल्प कालीन स्वभाव की मौद्रिक संपत्तियों या प्रतिभूतियों (सामान्यतः एक वर्ष से कम अवधि की) का व्यापार होता है, जबकि वित्त बाजार, मध्यम और दीर्घकालीन फण्ड का बाजार है जहाँ लम्बी अवधि के लिए बचत बिकती है। मुद्रा बाजार में ट्रेज़री बिल, वाणिज्यिक पत्र/पेपर और बैंकरों की स्वीकृतियां आदि खरीदे और बेचे जाते हैं।

मुद्रा बाजार साधन (Money Market Instruments): मुद्रा बाजार अल्पकालीन पैसे के लिए एक बाजार है और वित्तीय परिसंपत्तिया पैसे की सबसे नजदीकी विकल्प होती हैं। लघु अवधि शब्द का आमतौर पर एक 1 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए प्रयोग किया जाता है ।

मुद्रा बाज़ार के मुख्य साधन इस प्रकार है:-

कॉल/ नोटिस मनी मार्केट (Call Money Market): कॉल/ नोटिस मनी वह पैसा है जो एक लघु अवधि के लिए उधार दिया या लिया जाता है। जब पैसा एक दिन के लिए उधार दिया या लिया जाता है तो इसे कॉल (ओवरनाइट) मनी के रूप में जाना जाता है, इस तरह के पैसे को एक दिन के लिए उधार लिया जाता है और अगले कार्यदिवस (छुट्टियों की संख्या की परवाह किए बगैर) पर चुकता कर दिया जाता है, इसे "कॉल मनी" कहा जाता है। जब पैसा 1 या उससे अधिक अथवा 14 दिनों से ज्यादा समय के लिए उधार लिया जाता है तो इसे "नोटिस मनी" कहा जाता है। इस तरह के लेनदेन के लिए किसी प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती है।

इंटर- बैंक टर्म मनी (Inter- Bank Term Money): 14 दिनों से अधिक की अवधि की परिपक्व जमा राशि के लिए अंतर-बैंक बाजार को मुद्रा बाजार (Money Market) के रूप में जाना जाता है। इसके लिए वहीं नियम लागू होते हैं है जो कॉल/नोटिस मनी के लिए होते हैं, सिवाय कि मौजूदा नियम जिसमें निर्दिष्ट संस्थाओं को 14 दिनों से अधिक की अवधि के लिए उधार देने के लिए अनुमति नहीं होती है।

ट्रेजरी बिल्स (मुद्रा बाजार Treasury Bills): भारत में ट्रेज़री बिल्स की शुरुआत 1917 में पहली बार की गयी थी । लघु अवधि के लिए (एक वर्ष तक) केंद्र सरकार द्वारा उधार लेने के साधनों को ट्रेजरी बिल्स कहा जाता है। सरकार इसी के माध्यम से उधार लेती है । ये सर्वाधिक तरल प्रतिभूतियां होती हैं । इनका निर्गमन रिज़र्व बैंक के द्वारा सरकार के लिए किया जाता है। यह सरकार द्वारा किया गया एक वादा है जिसमें जारी होने की तिथि के एक वर्ष से कम अवधि के भीतर राशि का भुगतान करना होता है। इन्हें अंकित मूल्य के लिए एक छूट के तहत जारी किया जाता है

जमाराशियों का प्रमाण पत्र (Certificate of Deposits): जमाराशि के प्रमाणपत्र (सीडी) एक विनिमेय मुद्रा बाजार साधन है। यह डीमैट के रूप या एक बैंक में जमा राशि के लिए एक प्रमाणपत्र के रुप में या एक निर्धारित समय अवधि के लिए किसी अन्य वित्तीय संस्थान द्वारा जारी किया गया एक वचनबद्ध प्रमाणपत्र होता है।

वर्तमान में सीडी जारी करने के लिए दिशा-निर्देशों का नियंत्रण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है जिसमें समय -समय पर संशोधन भी किया जाता है। सीडी को निम्न संस्थान जारी कर सकते हैं:(I) निर्धारित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को छोड़कर वाणिज्यिक बैंक और स्थानीय क्षेत्रीय बैंक (एलएबी); (ii) तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह अनुमति प्रदान होती है कि वे एक लघु अवधि के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय नीतियों के तहत संसाधन जुटाएं। बैंकों को अपनी आवश्यकताओं के आधार पर सीडी जारी करने की स्वतंत्रता है। एक वित्तीय संस्थान (एफआई) कुल मिलाकर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय निर्देशों के आधार पर सीडी जारी कर सकता है। इसे 1989 में शुरू किया गया था।

वाणिज्यिक पत्र (Commercial Paper) (सीपी):

इसे मूलतः वाघुल समिति की संस्तुति पर मार्च 1989 को शुरू किया गया था। C.P. एक प्रतिज्ञा पत्र युक्त अल्प अवधि का प्रपत्र है जिसकी अवधि 7 से 90 दिन की होती है । सीपी की न्यूनतम परिपक्वता अवधि 7 दिनों की होती है। इसका निर्गमन बट्टा आधार पर होता है । सीपी साफ तौर पर एक समर्थन करने और वितरण से संबंधित समझौता है।

एक कंपनी जो सी.पी. जारी करने के लिए पात्र होगी- (क) कंपनी का कुल मूल्य, नवीनतम आडिटे की बैलेंस शीट के अनुसार 4 करोड़ रुपये से कम नहीं होनी चाहिए (ख) बैंकिग प्रणाली में कंपनी की कार्यशील पूंजी (निधि आधारित) की सीमा 4 करोड़ रुपये से कम नहीं होनी चाहिए और (ग) कंपनी के ऋण खाते को वित्तपोषण बैंक/ बैंको द्वारा तय एक मानक परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। न्यूनतम क्रेडिट रेटिंग क्रिसिल द्वारा पी -2 या अन्य एजेंसियों द्वारा तय इसी प्रकार की रेंटिंग होनी चाहिए।

पूंजी बाजार साधन (Capital Market Instruments): पूंजी बाजार में आम तौर पर निम्नलिखित दीर्घकालिक अवधि होती मुद्रा बाजार है, जैसे- एक वर्ष से अधिक की अवधि, वित्तीय साधनों; इक्विटी खंड में इक्विटी शेयर, प्रमुख शेयर, परिवर्तनीय मुख्य शेयर, गैर-परिवर्तनीय प्रमुख शेयर और ऋण खंड डिबेंचर, जीरो कूपन बांड, भीरी डिस्काउंट बांड आदि ।

हाइब्रिड साधन (Hybrid Instruments): हाइब्रिड साधनों में इक्विटी और डिबेंचर, दोनों विशेषताएं होती हैं। इस तरह के साधन को हाईब्रिड साधन कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर, परिवर्तनीय डिबेंचर, वारंट आदि।

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