कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल

उद्योग एवं व्यापार
Q.118 भारत में पहला लौह इस्पात कारखाना 1874 ई. में कहाँ खुला था?
Ans. कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में ।
Q.119 दुर्गापुर, राऊरकेला, बोकारो, भिलाई, बर्नपुर एवं सलेम सभी कंपनियां अधीन हैं?
Ans. स्टील ऑथेरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) के ।
Q.120 भारत के सूती वस्त्र की राजधानी कहा जाता हैं?
Q.121 एसोसिएट सीमेंट कंपनी लिमिटेड (ACC) की स्थापना की गई?
Q.122 कागज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य हैं?
Q.123 भारत में रेशम का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य हैं?
Q.124 आबिद हुसैन समिति का संबंध हैं?
Ans. लघु उद्योग सुधार से ।
Q. 125 लघु उद्योगों के लिए अलग से औद्योगिक नीति की घोषणा सर्वप्रथम की गई
Ans. 6 अगस्त 1991 से ।
Q. 126 भारत में सर्वाधिक सूती वस्त्रों की मिले हैं?
Q. 127 सफेद सोना कहा जाता हैं?
Q. 128 सबसे अच्छी किस्म का कोयला हैं?
Q.129 भारत में कुल तेल शोधक कारखानों की संख्या हैं?
Q. 130 किसी देश का आयात और निर्यात से संबंधित भुगतान शेष कहलाता हैं?
Q.131 पूर्वोत्तर राज्यों में औद्योगिकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम का आरंभ किया गया हैं?
Ans. नार्थ-इस्ट विजन-2010
Q. 132 कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल भारत में डीजल इंजन बनाने का पहला कारखाना 1932 ई. में खोला गया
Ans. सतारन (महाराष्ट्र) में
Q.133 भारत का पहला निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क की स्थापना की गई?
Ans. सीतापुर (राजस्थान) में ।
Q.134 अलवर की प्रसिद्ध औद्योगिक नगरी है?
Q.135 भारत सर्वाधिक विदेशी व्यापार करता हैं?
Ans. संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ।
Q.136 भारत में लघु और कुटीर उद्योग का कुल औद्योगिक निर्यात में भागीदारी हैं?
Ans. करीब 35 प्रतिशत ।
Q.137 भारतीय औद्योगिक विकास बैंक(IDBI) की स्थापना की गई
Ans. 1 फरवरी 1964 ई. को ।
Q.138 भारत में प्रथम सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना की गई
Ans. कोलकाला (1818 ई. में)
Q. 139 भारतीय साधारण बीमा निगम(GIC) की स्थापना की गई
Q.140 भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिटेड का मुख्यालय हैं?
Q.141 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना की गई
Ans. 27 दिसंबर 1945 को ।
Q.142 भारत में साइकिल बनाने का पहला कारखाना 1938 ई. में कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल खोला गया
Q.143 भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI) का स्थापना वर्ष हैं?
Q.144 केंद्रीय एगमार्क प्रयोगशाला स्थित हैं?
Q.145 विश्व का सबसे बड़ा निर्यात उद्योग हैं?
Q.146 औद्योगिक रुग्णता का शिकार होने वाला सर्वप्रथम उद्योग कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल हैं?
Ans. वस्त्र उद्योग ।
Q.147 GATT का नाम बदलकर WTO (विश्व व्यापार संगठन) किया गया
Ans. 1 जनवरी 1995 ई. को ।
Q.148 मूल्य वर्धित कर (VAT) लगाया जाता हैं?
Ans. उत्पादन से अंतिम बिक्री के मध्य प्रत्येक चरण में ।
Q.149 भारत अधिकतम विदेशी विनिमय प्राप्त करता हैं?
Ans. रत्न एवं जवाहरात निर्यात से ।
Q.150 पण्यों के क्रय बिक्री से संबंधित हैं?
Q.151 पूंजी प्रधान उद्योग का परिणाम होता हैं?
Ans. बेरोजगारी में वृद्धि ।
Q.152 अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वास्तविक उत्पादन लागत से कम दर पर माल का निर्यात कहलाता हैं?
भारत में आधुनिक औद्योगिक विकास
भारत में आधुनिक औद्योगिक विकास का प्रारंभ मुंबई में प्रथम सूती कपड़े की मिल की स्थापना (1854) से हुआ। इस कारखाने की स्थापना में भारतीय पूँजी तथा भारतीय प्रबंधन ही मुख्य था। जूट उद्योग का प्रारंभ 1855 में कोलकाता के समीप हुगली घाटी में जूट मिल की स्थापना से हुआ जिसमें पूँजी एवं प्रबंध-नियन्त्रण दोनो विदेशी थे। कोयला खनन उद्योग सर्वप्रथम रानीगंज (पश्चिम बंगाल) में 1772 में शुरू हुआ। प्रथम रेलगाड़ी का प्रारंभ 1854 में हुआ। टाटा लौह-इस्पात कारखाना जमशेदपुर (झारखण्ड राज्य) में सन् 1907 में स्थापित किया गया। इनके बाद कई मझले तथा छोटी औद्योगिक इकाइयों जैसे सीमेन्ट, कांच, साबुन, रसायन, जूट, चीनी तथा कागज इत्यादि की स्थापना की गई। स्वतंत्रता पूर्व औद्योगिक उत्पादन न तो पर्याप्त थे और न ही उनमें विभिन्नता थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की अर्थव्यवस्था अविकसित थी, जिसमें कृषि का योगदान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 60: से अधिक था तथा देश की अधिकांश निर्यात से आय कृषि से ही थी। स्वतंत्रता के 60 वर्षो के बाद भारत ने अब अग्रणी आर्थिक शक्ति बनने के संकेत दिए हैं।
भारत में औद्योगिक विकास को दो चरणो में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण (1947.80) के दौरान सरकार ने क्रमिक रूप से अपना नियन्त्रण विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों पर बढ़ाया। द्वितीय चरण (1980.97) में विभिन्न उपायों द्वारा (1980.1992 के बीच) अर्थव्यवस्था में उदारीकरण लाया गया। इन उपायों द्वारा उदारीकरण तात्कालिक एवं अस्थाई रूप से किया गया था। अत: 1992 के पश्चात उदारीकरण की प्रक्रिया पर जोर दिया गया तथा उपागमों की प्रकृति में मौलिक भिन्नता भी लाई गई।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में व्यवस्थित रूप से विभिन्न पंचवष्र्ाीय योजनाओं के अन्तर्गत औद्योगिक योजनाओं को समाहित करते हुए कार्यान्वित किया गया और कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भारी और मध्यम प्रकार की औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई। देश की औद्योगिक विकास नीति में अधिक ध्यान देश में व्याप्त क्षेत्राीय असमानता एवं असंतुलन को हटाने में केन्द्रित किया गया था और विविधता को भी स्थान दिया गया। औद्योगिक विकास में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिए भारतीय लोगों की क्षमता को प्रोत्साहित कर विकसित किया गया। इन्हीं सब प्रयासों के कारण भारत आज विनिर्माण के क्षेत्र में विकास कर पाया है। आज हम बहुत सी औद्योगिक वस्तुओं का निर्यात विभिन्न देशों को करते हैं।
विभिन्न लक्षणों के आधार पर उद्योगों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। उद्योगों को इन प्रमुख आधारों पर वर्गीकृत किया गया है-
कृषि आधारित उद्योग
वस्त्रा, चीनी, कागज एवं वनस्पति तेल उद्योग इत्यादि कृषि उपज पर आधारित उद्योग हैं। ये उद्योग कृषि उत्पादों को अपने कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं। संगठित औद्योगिक क्षेत्र में वस्त्र उद्योग सबसे बड़ा उद्योग है। इसके अन्तर्गत
- सूती वस्त्र
- ऊनी वस्त्र
- रेशमी वस्त्र
- कृत्रिम रेशे वाले वस्त्र
- जूट उद्योग आते हैं।
सूती कपड़ा उद्योग
भारत में औद्योगिक विकास का प्रारंभ 1854 में मुम्बई में आधुनिक सूती वस्त्रा कारखाने की स्थापना से हुआ। और तब से यह उद्योग उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त कर रहा है। वर्ष 1952 में इसकी कुल 378 औद्योगिक इकाइयाँ थीं जो मार्च 1998 में बढ़कर 1998 हो गई।
भारत की अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। यह बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। देश की कुल औद्योगिक श्रमिक संख्या का 1/5 वाँ हिस्सा कपड़ा उद्योग क्षेत्र में लगा हुआ है।
चीनी उद्योग
भारत के कृषि आधारित उद्योगों में चीनी उद्योग का दूसरा स्थान है। अगर हम गुड़, खांडसारी और चीनी तीनों के उत्पादन को जोड़कर देखें तो भारत विश्व में चीनी उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा। सन् 2003 में हमारे देश में लगभग 453 चीनी के कारखाने थे। इस उद्योग में लगभग 2.5 लाख लोग लगे हुए हैं।
लोहा एवं इस्पात उद्योग
यह एक आधारभूत उद्योग हैं क्योंकि इस के उत्पाद बहुत से उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
भारत में यद्यपि लौह इस्पात के निर्माण की औद्योगिक क्रियाएँ बहुत पुराने समय से चली आ रही हैं किन्तु आधुनिक लौह इस्पात उद्योग की शुरूवात 1817 में बंगाल के कुल्टी नामक स्थान पर बंगाल लोहा एवं इस्पात कारखाने की स्थापना से हुई। टाटा लोहा एवं इस्पात कम्पनी की स्थापना जमशेदपुर में 1907 में हुई। इसके पश्चात् भारतीय लोहा एवं इस्पात सयंत्रा की स्थापना 1919 में बर्नपुर में हुई। इन तीनो संयत्रों की स्थापना निजी क्षेत्रा के अंतर्गत हुई थी। सार्वजनिक क्षेत्रा के अंतर्गत प्रथम लोहा तथा इस्पात का संयत्रा जिसे अब ‘‘विश्वेसरैया लोहा एवं इस्पात कम्पनी’’ के नाम से जाना जाता है, की स्थापना भद्रावती में सन् 1923 में हुई थी।
स्वतंत्राता के पश्चात् लोहा एवं इस्पात उद्योग में तीव्रता से प्रगति हुई। सभी वर्तमान इकाइयों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई। तीन नए एकीकृत संयत्रों की स्थापना क्रमश: राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (छत्तीसगढ़) तथा दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में की गई। बोकारो इस्पात संयन्त्रा की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्रा के अनतर्गत सन 1964 में की गई। बोकारो तथा भिलाई स्थित सयंन्त्रो की स्थापना भूतपूर्व सोवियत संघ के सहयोग से की गई। इसी प्रकार दुर्गापुर लोहा एवं इस्पात संयन्त्रा की स्थापना यूनाइटेड किंगडम के सहयोग से तथा राऊरकेला सयंत्रा जर्मनी के सहयोग से स्थापित किए गए। इसके पश्चात विशाखापट्टनम और सलेम संयंत्रो की स्थापना हुई। स्वतंत्राता के समय भारत सीमित मात्रा में कच्चे लोहे तथा इस्पात का कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल निर्माण करता था। सन् 1950.51 में भारत में इस्पात का उत्पादन केवल 10 लाख टन था जो 1998–99 में बढ़ते-बढ़ते 238 लाख टन तक पहुँच गया।
भारत के प्रमुख लौह तथा इस्पात सयंन्त्रा झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यो में अवस्थित हैं। इसके अलावा भारत में 200 लघु इस्पात सयंत्रा हैं जिनकी क्षमता 62 लाख टन प्रति वर्ष है। लघु इस्पात संयन्त्रों में इस्पात बनाने के लिए स्क्रेप या स्पॉन्ज लोहे का प्रयोग किया जाता है। ये सारी छोटी इकाइयाँ देश में लोहा तथा इस्पात उद्योग के महत्वपूर्ण घटक हैं।
लोहा तथा इस्पात उद्योग के अधिकांश सयंन्त्रा भारत के छोटा नागपुर पठार पर अथवा उसके आसपास इसलिए स्थापित हुए हैं, क्योंकि इसी क्षेत्रा में लौह अयस्क, कोयला, मेंगनीज, चूने का पत्थर, डोलोमाइट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के विपुल निक्षेप मिलते हैं।
पेट्रो-रसायन उद्योग
भारत में पेट्रोरसायन उद्योग तेजी से वृद्धि करता हुआ उद्योग है। इस उद्योग ने देश के पूरे उद्योग जगत में एक क्राँति ला दी है क्योंकि इसके उत्पाद परम्परागत कच्चे माल जैसे लकड़ी, काँच एवं धातु को प्रतिस्थापित करने में अधिक सस्ते और उपयोगी पाए जाते हैं। लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूख्रत करने वाले इस पेट्रो-रसायन के उत्पाद लोगों को सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। पेट्रो-रसायन को पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से प्राप्त किया जाता है। हम पेट्रो-रसायन से निर्मित विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग सुबह से शाम तक करते हैं। टूथ-ब्रश, टूथ-पेस्ट, कंघी, बालो में लगाने वाले हेयर पिन, साबुन रखने के डिब्बे, प्लास्टिक मग, सिंथेटिक कपड़े, रेडियो और टी.वी. कवर, बाल पॉइन्टपेन, इलेक्ट्रिक स्विच, डिटर्जेंट पाउडर, लिपस्टिक, कीड़े मारने की दवाइयाँ, प्लास्टिक थैलियाँ, फोम के गद्दे तथा चादरें इत्यादि असंख्य वस्तुएँ पेट्रो-रसायन से ही बनती हैं।
भारतीय पेट्रो-रसायन निगम ने वड़ोदरा (गुजरात) के समीप एक वृहद पेट्रोकेमिकल काम्पलेक्स को स्थापित किया है जिसमे विभिन्न प्रकार के पदार्थ बनाए जाते हैं। वड़ोदरा के अलावा गुजरात राज्य में गन्धार एवं हजीरा केन्द्र भी स्थापित किए गए हैं। अन्य राज्यो में महाराष्ट्र (नागाथोन केन्द्र) में पेट्रो रसायन उद्योग स्थापित है। भारत पेट्रो रसायन पदार्थो के निर्माण मे पूर्णत: आत्म निर्भर है।
कच्चे तेल को परिष्कृत कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल किए बगैर कोई खास महत्व नहीं है। परन्तु जब उसे परिष्कृत किया जाता है तब वह खनिज तेल पेट्रोल के रूप में बहुत मूल्यवान बन जाता है। तेल के परिष्करण करते समय हजारों किस्म के पदार्थ मिलते हैं- जैसे मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल, लुब्रीकेन्टस और वे पदार्थ जो पेट्रो-रसायन उद्योग में कच्चे माल के रूप में उपयोग में आते हैं।
भारत में इस समय 18 तेल परिष्करण शालाएँ है। इन तेल परिष्करण शालाओं की अवस्थिति इस प्रकार हैं- डिगबोई, बोंगइगांव, नूना माटी (तीनो असम राज्य में), मुम्बई (महाराष्ट्र) में दो इकाइयाँ हैं, विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश), बरौनी (बिहार राज्य), कोयाली (गुजरात), मथुरा (उत्तर प्रदेश), पानीपत (हरियाणा), कोच्चि (केरल), मँगलोर (कर्नाटक) और चेन्नई (तमिलनाडु)। जामनगर (गुजरात) में स्थित परिष्करणशाला एकमात्रा संयंत्रा है जो निजी क्षेत्रा के अन्तर्गत आता है तथा यह रिलायन्स उद्योग लि. द्वारा लगाया गया है।
असम सरकार का चाय उद्योग को तोहफा, 200 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा
चाय पर 7 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से सब्सिडी
कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन की बजह से काफी समय से बंद पड़े चाय के बागानों से चाय उद्योग मंदा पड़ गया है। इसे दोबारा से गति देने के लिए असम सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत असम का चाय उद्योग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 200 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई है। इस पैकेज में अंतर्गत कृषि आय कर में तीन साल की छूट दी जाएगी तथा 7 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से राज्य सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाएगी।
जानकारी के अनुसार असम सरकार ने राज्य के चाय उद्योग के लिए 200 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की, जिसमें इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कृषि आय कर में तीन साल की छूट भी शामिल है। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य में चाय उद्योग पिछले कुछ वर्षों से मुश्किल दौर से गुजर रहा है और लॉकडाउन के कारण चाय बागान भी बंद रहे। उन्होंने कहा कि राज्य में चाय उद्योग को संकट से बाहर निकालने की जरूरत है और हम चार प्रोत्साहन दे रहे हैं जो यह सुनिश्चित करेंगे कि वे आर्थिक रूप से व्यवहारिक बने रहें।
सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1
क्या-क्या है इस पैकेज में शामिल / चाय उद्योग का प्रोत्साहन पैकेज
- 200 करोड़ के इस प्रोत्साहन पैकेज में राज्य सरकार द्वारा 20 लाख रुपए की अधिकतम सीमा के साथ कार्यशील पूंजी पर तीन प्रतिशत ब्याज सहायता देगी।
- कार्यशील पूंजी पर तीन साल तक कर नहीं लिया जाएगा।
- चाय पर मिलेगी सात रुपए प्रति किलो की सब्सिडी। टी बोर्ड से तीन रुपए प्रति किलोग्राम की सब्सिडी अलग से।
- आर्थोडॉक्स चाय के उत्पादन के लिए आवश्यक संयंत्र और मशीनरी स्थापित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा
- 25 प्रतिशत की पूंजी सब्सिडी भी दी जाएगी।
आर्थोडॉक्स चाय का उत्पादन बढ़ाने पर दिया जाएगा जोर
सरमा ने कहा कि आर्थोडॉक्स चाय का ज्यादातर निर्यात किया जाता है और सरकार ने फैसला किया है कि इसका उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने इस पर सात रुपए प्रति किलो की सब्सिडी देने का फैसला किया है और टी बोर्ड की तीन रुपए प्रति किलोग्राम की सब्सिडी को मिलाकर 10 रुपए प्रति किलोग्राम की कुल सब्सिडी निश्चित रूप से आर्थोडॉक्स चाय के उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने में मददगार साबित होगी। उन्होंने कहा कि आर्थोडॉक्स चाय के उत्पादन के लिए आवश्यक संयंत्र और मशीनरी स्थापित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा 25 प्रतिशत की पूंजी सब्सिडी भी दी जाएगी। इस प्रकार सरकार चाय कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल उद्योग की सहायता के लिए 200 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
दुर्गापूजा पर श्रमिकों बोनस किया जाएगा भुगतान
सरमा ने कहा कि हम इस उम्मीद के साथ यह घोषणा कर रह हैं कि चाय बागान प्रशासन बिना किसी अनाश्यक विवाद के अपने श्रमिकों को दुर्गापूजा पर बोनस का भुगतान सुनिश्चित करेगा। राज्य सरकार के स्वामित्व वाले असम टी कार्पोरेशन ने पहले ही अपने कर्मचारियों के लिए 20 प्रतिशत बोनस की घोषणा कर दी है। उम्मीद की जा रही है कि दूसरे चाय बागान भी ऐसी घोषणा करेंगे।
भारत में कहां-कहां होता है चाय का उत्पादन (भारतीय चाय उद्योग) / चाय पत्ती का बिजनेस/ चाय का बिजनेस
असम भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है। मॉल्टी असमिया चाय अधिकतर ब्रह्मपुत्र घाटी में उगाई जाती है। घाटी के मध्य भाग में स्थित जोरहाट को अक्सर ’विश्व की चाय की राजधानी’ कहा जाता है। यहां चाय का सबसे अधिक उत्पादन होता है। इसके बाद पश्चिम बंगाल में स्थित दार्जिलिंग में हर तरफ चाय की खेती होती है। यहां पर उत्पादित चाय की खासियत यह है कि यह हल्के रंग की होती है और इससे फूलों की महक आती है. भारत के कुल चाय का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन दार्जिलिंग में होता है। इधर तमिलनाडु में स्थित कोलुक्कुमालै चाय एस्टेट शायद दुनिया का सबसे ऊंचा चाय बागान है। ऊंची चोटी पर बनाए जाने के कारण यह चाय अपने अनूठे सुगंध और स्वाद के लिए जाना जाता है। वहीं 19वीं सदी पालम में चाय बागान की स्थापना की गई थी। पालमपुर सहकारी चाय कारखाना मेहमानों का स्वागत करने के साथ ही कारखाने में घूमने-फिरने का मौका भी देता है।
चाय के निर्यात में भारत की स्थिति
चाय का उत्पादक विश्व में सबसे ज्यादा चीन में किया जाता है तथा सबसे ज्यादा निर्यातक देश श्रीलंका है। यहां तक की श्रीलंका की राष्ट्रीय आय भी चाय के निर्यात से चलती है। भारत में चाय का उत्पादन केन्या और श्रीलंका से अधिक होने के बावजूद यहां से चाय का निर्यात इन दोनों देशों से कम होता है। इससे स्पष्ट है कि यहां की घरेलू मांग ज्यादा है या फिर यहां की चाय की गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है। चाय के निर्यात में केन्या और श्रीलंका आगे हैं। चाय निर्यात से केन्या 120 करोड़ डॉलर और श्रीलंका 160 करोड़ डॉलर कमाता है, वहीं भारत इसके निर्यात से 80 करोड़ डॉलर रुपए की विदेशी मुद्रा अर्जित ही अर्जित कर पाता है।
अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति , पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
बंद रहे बाजार, सब्जियों की आपूर्ति ठप
कोयम्बत्तूर. हॉजरी सिटी तिरुपुर में बंद का सर्वाधिक असर व्यवसाय पर पड़ा। एक मोटे अनुमान के मुताबिक बुधवार को करीब एक हजार करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ। तिरुपुर शहर सहित आसपास के गांव -कस्बों में बड़ी संख्या में निटवेअर, एपरेयल्स हॉजरी से जुड़े अन्य उत्पादों की छोटी-बड़ी हजारों इकाई है। यहां का बाजार पूरी तरह हॉजरी कम्पनियों के कर्मचारी व श्रमिकों पर टिका है। बाजरों में भी चहल -पहल कम रही। कम्पनियों में उत्पादन ठप होने से 200 करोड़ का व विदेशी मुद्रा व्यापार और बैंकिंग परिचालन ठप होने से 8 00 करोड़ का नुकसान हुआ। तिरुपुर इलाके में करीब 2000 से अधिक बैंक कर्मचारियों ने भी बंद में भाग लिया। कामगारों ने सुबह 10 बजे केंद्रीय डाकघर के सामने सड़क जाम करने की कोशिश भी की। उन्होंने सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ नारे लगाए।
हॉजरी सिटी तिरुपुर में बंद का सर्वाधिक असर व्यवसाय पर पड़ा। एक मोटे अनुमान के मुताबिक बुधवार को करीब एक हजार करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ।
केरल सहित पडोसी राज्यों को बड़ी मात्रा में सब्जी आपूर्ति करने वाले नीलगिरि में बंद का व्यापक असर रहा। ऊटी से रोजाना सैकड़ों ट्रकों से केरल व कर्नाटक तक सब्जियों भेजी जाती है, लेकिन बंद के कारण ट्रकों के चक्के थमे रहे। ऊटी से वायनाड, कोझीकोड, कन्नूर और केरल के अन्य शहरों के लिए जाने वाली सभी बसों को रद्द कर दिया गया। हालांकि मैसूर और बेंगलुरू के लिए रोजाना की तरह बसें उपलब्ध रही। इधर अरुवांगडु कॉर्डाइट कारखाने के 1000 से अधिक कर्मचारियों ने केंद्र की श्रम नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। श्रमिकों ने कुछ देर के लिए कोटगिरी मार्ग पर यातायात जाम कर दिया।
अलमुनियम प्रगलन
भारत में अलमुनियम प्रगलन के आठ प्लांट हैं। ये उड़ीसा (नालको और बालको), पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तामिलनाडु कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल में हैं। 2004 में भारत में 600 मिलियन टन अलमुनियम का उत्पादन हुआ था।
रसायन उद्योग
रसायन उद्योग का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में शेअर 3% है। भारत का रसायन उद्योग का स्थान एशिया में तीसरा है और विश्व में बारहवां है।
अकार्बनिक रसायन: सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, अल्काली, सोडा ऐश और कॉस्टिक सोडा अकार्बनिक रसायन हैं। सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल उर्वरक, सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक, एढ़ेसिव, पेंट और डाई बनाने में किया जाता है। सोडा ऐश का इस्तेमाल काँच, साबुन, डिटर्जेंट, कागज, आदि बनाने में होता है।
कार्बनिक रसायन: पेट्रोकेमिकल इस श्रेणी में आता है। पेट्रोकेमिकल का इस्तेमाल सिंथेटिक फाइबर, सिंथेटिक रबर, प्लास्टिक, डाई, दवा, आदि बनाने में होता है। कार्बनिक रसायन की फैक्टरियाँ तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल प्लांट के आस पास मौजूद हैं।
रसायन उद्योग ही अपना सबसे बड़ा ग्राहक होता है।
उर्वरक उद्योग
उर्वरक उद्योग में मुख्य रूप से नाइट्रोजन युक्त उर्वरक, फॉस्फ़ेटिक उर्वरक, अमोनियम फॉस्फेट और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। कॉम्प्लेक्स उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का समावेश होता है। भारत के पास वाणिज्यिक रूप से इस्तेमाल लायक पोटाश या पोटैशियम उत्पाद के भंडार नहीं होने के कारण भारत को पोटाश का आयात करना पड़ता है।
भारत नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहाँ 57 खाद कारखाने हैं जहाँ नाइट्रोजन युक्त उर्वरक और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। उनमें से 29 कारखानों में यूरिया का उत्पादन होता है और 9 कारखानों में बाइप्रोडक्ट के रूप में अमोनियम सल्फेट का उत्पादन होता है। यहाँ 68 छोटे कारखाने हैं जो सिंगल सुपरफॉस्फेट बनाते हैं।
सीमेंट उद्योग
- सीमेंट उद्योग में प्रयोग होने वाला कच्चा माल भारी होता है; जैसे चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम। गुजरात में सीमेंट के कई कारखाने हैं क्योंकि वहाँ बंदरगाह नजदीक है।
- भारत में सीमेंट के 128 बड़े और 323 छोटे कारखाने हैं।
- भारत के सीमेंट को क्वालिटी में सुधार के बाद कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल से पूर्वी एशिया, गल्फ देशों, अफ्रिका और दक्षिण एशिया में अच्छा बाजार मिल गया है। उत्पादन और निर्यात के मामले में यह उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
मोटरगाड़ी उद्योग
आज भारत में लगभग हर किस्म की मोटरगाड़ी बनती है। 1991 की आर्थिक उदारवादी नीतियों के बाद कई मोटरगाड़ी कम्पनियों ने भारत में अपना काम शुरु किया। मोटरगाड़ी के लिए आज भारत अच्छा बाजार बन गया है। भारत में अभी कार और मल्टी यूटिलिटी वेहिकल के 15 निर्माता, कॉमर्सियल वेहिकल के 9 निर्माता और दोपहिया वाहन के 15 निर्माता हैं। दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, बंगलोर, सानंद, पंतनगर, आदि मोटरगाड़ी उद्योग के मुख्य केंद्र हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का मुख्य केंद्र बंगलोर है। मुम्बई, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और कोयम्बटूर इस उद्योग के अन्य मुख्य केंद्र हैं। देश में 18 सॉफ्टवेयर टेक्नॉलोजी पार्क हैं जहाँ सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा और उच्च डाटा संचार की सुविधा मिलती है।
इस उद्योग से भारी संख्या में रोजगार का सृजन हुआ है। 31 मार्च 2005 तक 10 लाख से अधिक लोग सूचना प्रौद्योगिकी में कार्यरत हैं। हाल के वर्षों में बीपीओ में तेजी से वृद्धि होने के कारण इस सेक्टर से विदेशी मुद्रा की अच्छी कमाई होती है।
औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण निम्नीकरण
वायु प्रदूषण: उद्योग में वृद्धि से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। उद्योग धंधों से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड स्तर बढ़ जाता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थ भी समस्या खड़ी करते हैं। कुछ उद्योगों से हानिकारक रसायन के रिसाव का खतरा रहता है। वायु प्रदूषण से इंसानों की सेहत, जानवरों, पादपों और भवनों पर बुरा असर पड़ता है। इससे पूरे वातावरण पर असर पड़ता है।
जल प्रदूषण: उद्योग से निकलने वाला कार्बनिक और अकार्बनिक कचरा और अपशिष्ट से जल प्रदूषण होता है। कागज, लुगदी, रसायन, कपड़ा, डाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चमड़ा उद्योग, आदि जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार उद्योग हैं।
जल का तापीय प्रदूषण: थर्मल प्लांट से गरम पानी सीधा नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है, कारखाना विदेशी मुद्रा पश्चिम बंगाल जिससे जल का तापीय प्रदूषण होता है। तापीय प्रदूषण से जल में रहने वाले सजीवों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि ज्यादातर सजीव एक खास तापमान रेंज में ही जीवित रह सकते हैं।
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्ट परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलते हैं। रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट को सही ढ़ंग से रखने की जरूरत होती है। ऐसे पदार्थों में हल्की सी भी लीकेज होने से इंसानों और अन्य सजीवों को होने वाले नुकसान घातक और दूरगामी होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: कारखानों से ध्वनि प्रदूषण की भी समस्या होती है। ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी, उच्च रक्तचाप और बहरापन की समस्या होती है। कारखाने के मशीन, जेनरेटर, इलेक्ट्रिक ड्रिल, आदि से काफी ध्वनि प्रदूषण होता है।